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भगवती सूत्र के १५ वें शतक के 'तेय निसग्ग' उसे में ( सूत्र ५५३, पत्र १२४७) 'तृरण' से 'अवकर' राशि के बीच में 'कट्टराशि' भी आयी है ।
जन्म
जिस दिन से भगवान् महावीर त्रिशला के गर्भ में आये, उसी दिन से राजा सिद्धार्थ के कुल में हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, प्रेम-सत्कार तथा राज्य की वृद्धि होने लगी । अत: मात-पिता ने यह संकल्प किया कि जब यह लड़का उत्पन्न होगा, तब इसका नाम गुरण निष्पन्न 'वर्द्धमान ' ' रक्खेंगे । तीर्थंकर का जीव जब गर्भ में आता है तो वह मति २, श्रुत अवधि इन तीनों ज्ञानों से सम्पन्न होता " है । भगवान् महावीर भी
और
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१ - कल्पसूत्र, सूत्र १०९ सुबोधिका टीका पत्र २०४ - २०५
२ - तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ॥ १४ ॥
- तत्त्वार्थाधिगम सूत्र, प्रथम अध्याय. मन से युक्त चक्षु आदि इन्द्रियों द्वारा रूप आदि विषयों का जो प्रत्यक्ष ज्ञान होता है वह मतिज्ञान है !
३ - श्रुतं मतिपूर्वं .......॥ २० ॥
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- 'जैन-दर्शन', खण्ड तीसरा, पृष्ठ २८७
इन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तद्वारेण उपजायमानं सर्वं मतिज्ञानमेव,
केवलं परोपदेशात् आगमवचनाच्च भवन् विशिष्टः कश्चिन्मतिभेद: एव श्रुतं नान्यत् ।"
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- मलधारिरचित विशेषावश्यक भाष्य टीका गाथा ८६, पत्र ५७ ४- अवधिज्ञानावरणविलय विशेषसमुद्भवं भवगुणप्रत्ययं भवगुणप्रत्ययं रूपिद्रव्यगोचरमवधिज्ञानम् ॥ २१ ॥
— प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, द्वतीय परिच्छेदः ।
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, प्रथम अध्याय
अवधिज्ञान रूपी द्रव्यों को प्रत्यक्ष करता है ।
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-'जैन दर्शन', तृतीय खण्ड, पृष्ठ २६७
५ - कल्पसूत्र, सुबोधिका टीका, सूत्र ३, पत्र २७
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