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(१३२) १३--रत्नराशि को देखने से रत्न के गढ़ों से विभूषित होगा।
१४-निधूर्म अग्नि को देखने से भव्य प्राणिरूप सुवर्ण को शुद्ध करने वाला होगा।
इन चौदह महास्वप्नों का समुचित फल यह है कि वह चौदह राजलोक के अग्रभाग पर स्थित सिद्धशिला के ऊपर निवास करने वाला होगा।
७२ स्वप्न भगवतीसूत्र सटीक (शतक १६, उद्देशा ६, सूत्र ५८१, पत्र १३०६-१३११) में ४७ स्वप्न गिनाये गये हैं । १४ स्वप्न तीर्थंकर की माता देखती हैं। १० महास्वप्न भगवान् महावीर ने छद्मस्थ काल में हस्तिग्राम के बाहर शूलपाणि यक्ष के मंदिर में देखे थे। इस प्रकार कुल ७१ स्वप्न होते हैं। तीर्थंकर की माता के स्वप्नों में विमान अथवा भवन है। इस प्रकार यह एक और लेकर ७२ स्वप्न हुए। भगवती-सूत्र में गिनाये स्वप्न इस प्रकार है :
१ हयपंक्ति २ गजपंक्ति ३ नरपंक्ति ४ किन्नरपंक्ति ५ किंपुरुषपंक्ति ६महोरग पंक्ति ७ गंधवपंक्ति ८ वृषभपंक्ति ६ दामिणी १० रज्जु ११ कृष्णसूत्र १२ नील सूत्र १३ लोहितसूत्र १४ हरिद्रासूत्र १५ शुक्ल सुत्र १६ अग्रासि १७ तम्बरासि १८ तउयरासि १९ सीसगरासि २० हिरण्यरासि २१ सुवर्णरासि २२ रत्नरासि २३ वज्ररासि २४ तृणरासि २५ कट्ठरासि २६ पत्ररासि २७ तयारासि २८ भुसरासि २९ तुसरासि ३० गोमयरासि ३१ अवकर रासि ३२ शरस्तम्भ ३३ वीरिणस्तम्भ ३४ वंशीमूल स्तम्भ ३५ वल्लीमूल स्तम्भ ३६ क्षीरकुम्भ ३७ दधिकुम्भ ३८ घृतकुम्भ ३९ मधुकुम्भ ४० सुरावियडकुंभ ४१ सोवीरवियडकुंभ ४२ तेल्लकुंभ ४३ वसाकुंभ ४४ पद्मसरोवर ४५ सागर ४६ भवन ४७ विमान ।
सूरत से प्रकाशित श्री व्याख्याप्रज्ञप्ति की टीका में 'जाव' से समझे जाने वाले अन्य स्वप्न तो ठीक लिखे हैं, पर लिखनेवाला 'कट्ठराशि' भूल गया।
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