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(१४६) वीरं अरिष्टनेमि पासं मल्लि च वासुपुज्जं च । एए मुत्तण जिणे अवसेसा आसि रायाणो ॥ २२१ ॥ रायकुलेसु वि जाया विसुद्धवंसेसु खत्तिअकुलेसु । न य इच्छियाभिसेओ कुमारवासम्मि पव्वइया ॥ २२२ ।।
-आवश्यकनियुक्ति, पृष्ठ ३६ । ठीक उसी प्रकार का उल्लेख दिगम्बर-पुराणों में निम्नलिखित रूप में मिलता है
वासुपूज्यो महावीरो मल्लिः पार्थो यदुत्तमः । कुमारा निर्गता गेहात पृथिवीपतयोऽपरे ॥
-पद्मपुराण २०, ६७॥ निष्क्रान्तिर्वासुपूज्यस्य मल्ले मिजिनांत्ययोः। पञ्चानां तु कुमाराणां राज्ञां शेषजिनेशिनाम् ।।
-हरिवंशपुराण ६०, २१४ भाग २, पृष्ठ ७१६ । णेमी मल्ली वीरो कुमारकालम्मि वासुपुज्जो य । पासो वि गहिदवा सेसजिणा रज्जचरमम्मि ॥ ६७ ॥
-तिलोयपण्णति, अधिकार ४, गाथा ६७० । इन श्वेताम्बर और दिगम्बर-ग्रंथों में 'कुमार' शब्द का जो प्रयोग हुआ है, लोग अज्ञानवश उसका अर्थ 'कुँवारा' अथवा 'अविवाहित' लेते हैं, जबकि 'कुमार' शब्द का वह अर्थ ही नहीं होता है। यह भ्रम तो वस्तुत: संस्कृत भाषा के शब्द को स्थानीय भाषा के शब्द के रूप में बदल देने से हआ है। 'कुमार' शब्द का वास्तविक अर्थ क्या होता है, इसके स्पष्टीकरण के लिए हम कुछ कोषों के प्रमाण दे रहे हैं :कुमारो युवराजेऽश्ववाहके बालके शुके ।
शब्दरत्नसमन्वय कोष-पृष्ठ-२६८ ।
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