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(१६४) सारी रात भटककर प्रातःकाल को जब ग्वाला वहाँ वापिस आया, तो उसने भगवान् के पास बैठे हुए अपने बैल देखे। देखते ही उसको क्रोध आ गया। वह झल्लाकर बोला-"बैलों को जानते हुए भी आप क्यों कुछ नहीं बोले ?"---और हाथ में बैल बाँधने की रस्सी लेकर भगवान् को मारने दौड़ा। उस समय इंद्र अपनी सभा में बैठा विचार कर रहा था कि, जरा देखू तो सही कि, भगवान् प्रथम दिन क्या करते हैं ? उस समय ग्वाले को मारने के लिए तैयार होता देख, इन्द्र ने उसको वहीं स्तम्भित कर दिया और साक्षात् प्रकट होकर कहा-“हे दुरात्मन्, यह तू क्या करता है ? क्या तुझे यह नहीं मालूम कि, यह महाराजा सिद्धार्थ के पुत्र वर्धमान कुमार है।" ग्वाला लज्जित होकर चला गया।'
उसके बाद इंद्र ने भगवान् महावीर की वंदना करके कहा कि, हे देवार्य, आपको भविष्य में बहुत बड़े-बड़े कष्ट झेलने पड़ेंगे। आपकी आज्ञा हो तो मैं आपकी सेवा में रहूँ। इस पर भगवान् महावीर ने उत्तर दिया- 'हे इन्द्र न कभी ऐसा हुआ है और न होगा कि देवेन्द्र या असुरेन्द्र की सहायता से अर्हन्त केवल-ज्ञान और सिद्धि प्राप्त करें। अर्हन्त अपने ही बल एवं पराक्रम से केवल ज्ञान प्राप्त करके सिद्धि को प्राप्त करते हैं ।" २ तब इन्द्र ने मरणान्त १--त्रिषाष्टि शलाका पुरुष चरित्र पर्व १०, सर्ग ३, श्लोक २५-२६,
पत्र १९-२, आवश्यक चूर्णी पत्र २६६-२७० । २--नो खलु सक्का ! एवं भूअं वा ३ ज णं अरिहंता देविंदाण वा असुरिं
दाण वा निसाए केवलणाणं उप्पाडेंति उप्पा.सु वा ३ तवं वा करेंसु वा ३ सिद्धि वा वच्चिसु वा ३ णण्णत्थ सएएं उट्ठाण कम्मबलविरियपुरिसक्कारपरक्कमेणं ।
-आवश्यकचूर्णि-पत्र २७० । ना पेक्षां चक्रिरेऽहन्तः पर साहायिकं क्वचित् ॥२६॥ नैतद्भूतं भवति वा भविष्यति च जातुचित् । यदर्हन्तोऽन्यसाहाय्यादर्जयन्ति हि केवलम् ॥३०॥ केवलं केवलज्ञानं प्राप्नुवन्ति स्ववीर्यतः । स्ववीर्येणैव गच्छन्ति जिनेन्द्राः परमं पदम् ।।३१॥
-त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित, पर्व १०, सर्ग ३, पत्र २०-१ ।
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