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( पृष्ठ ७८ ) में लिखा है कि राजा सिद्धार्थ यशोदा को अपनी पुत्रवधू बनाना चाहते थे । अतः स्पष्ट है कि यह यशोदा नाम श्वेताम्बरों ने बौद्धों से नकल करके नहीं लिया है । और, यहाँ एक भूल यह और बता दूँ कि गौतम की पत्नी का नाम 'यशोदा' नहीं, पर 'यशोधरा' था ।
कामताप्रसाद ने श्वेताम्बरों पर छींटाकशी कर दी; पर उनके साथी दिगम्बर भी 'कुमार' का अर्थ 'कुंआरा' नहीं मानते । हमने उसके प्रमाण के लिए पहिले नाथूराम का एक उद्धरण दे दिया है। पर, कामताप्रसाद जी ने श्वेताम्बर - दिगम्बर का नाम लेकर यह मतभेद बिना दिगम्बर शास्त्रों के अवलोकन किये खड़ा किया है । चम्पालालजी - कृत 'चर्चा - सागर' में एक श्लोक उद्धृत है । वह श्लोक सारी शंका ही मिटा देता है । वह श्लोक इस प्रकार है:वासुपूज्यस्तथा मल्लिर्नेमिः पार्श्वोऽथ सन्मतिः । कुमाराः पञ्च निष्क्रान्ताः पृथिवीपतयः परे ॥
यहाँ स्पष्ट है कि 'कुमार' से प्रयोजन है कि जो पृथ्वीपति न हुआ हो । 'निर्वारण-भक्ति' में भी स्पष्ट उल्लेख है कि ३० वर्ष की उम्र तक भगवान् ने समस्त भोग भोगे । उसमें श्लोक है
भुक्त्वा कुमारकाले त्रिंशद्वर्षाण्यनन्त गुणराशिः । अमरोपनीत भोगान् सहसाभिनिवोधितोऽन्येद्युः ॥
ऐसा ही उल्लेख स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा में निम्नलिखित रूप में है - तिहुयण पहाण सामिं कुमारकाले वि तविय तव चरणं । वसुपुज्जसुयं मल्लिं चरमतियं संधुवे णिच्चं ॥
'भगवान् महावीर' के लेखक पन्यास कल्वाएाविजय जी ने अपनी पुस्तक में भगवान् के विवाह का उल्लेख (पृष्ठ १२) किया है । परन्तु उस पर एक टिप्पणी भी लगा दी है । और, टिप्पणि से एक भ्रम उपस्थित कर दिया है । उन्होंने लिखा है – “श्वेताम्बर - ग्रन्थकार महावीर को विवाहित मानते हैं और उसका मुख्य आधार 'कल्पसूत्र' है ।" हमने विवाह के समस्त प्रमाण ऊपर दे दिये हैं । उनका उल्लेख हम यहाँ पुनः नहीं करेंगे; पर कल्याण
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