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(१५०) वासुपूज्यमल्लिनेमि पार्श्ववीर जिनेश्वराः । प्रवव्रजुवेयस्यायेऽनुपात्तराज्य संपदः ॥१०॥ प्रवव्रजुर्भक्तराज्याः शेषा वयसि पश्चिमे । मण्डलेशाः परे तेषु चक्रिणः शान्तिकुन्थ्वराः ॥१००३।। अभोगफलकर्माणौ मल्लिनेमिजिनेश्वरौ । निरीयतुरनुद्वाही कृतोद्वाहाः परे जिनाः ॥ १००४ ॥ -लोकप्रकाश, सर्ग ३२, पृष्ठ ५२४, प्रका. (जै० ध० प्र० सभा, भावनगर)
अर्थात्-वासुपूज्य, मल्लि, नेमनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी ने बिना राज्य प्राप्त किये प्रथम वय में दीक्षा ली और बाकी तीर्थंकरों ने राज्य भोगकर पश्चिम वय में दीक्षा ली। उनमें शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ चक्रवर्ती थे और बाकी तीर्थंकर माण्डलिक राजा थे। मल्लिनाथ और नेमिनाथ के भोगावलि कर्म अवशेष नहीं होने से, उन्होंने बिना ब्याह किये ही दीक्षा ली और शेष २२ तीर्थंकरों ने लग्न करके दीक्षा ली। +
+ (३) 'ग्रामायारा विसया निसेविया ते कुमारवज्जेहि' के 'अामायारा विसया' पद पर मलयगिरि की टीका इस प्रकार है :
"ग्रामाचारा नाम विषया उच्यन्ते, ते विषया निषेविताआसेविताः कुमारवजैः....शेषैः सर्वैस्तीर्थकृद्भिः। किमुक्तं भवति ?वासुपूज्य-मल्लिस्वामी-पार्श्वनाथ-भगवदरिष्टनेमिव्यतिरिक्तः सर्वैस्तीर्थकृद्भिरासेविता विषयाः न तु वासुपूज्य प्रभृतिभिः, तेषां कुमारभाव एव व्रतग्रहणाभ्युपगमादिति, अथवा प्रामाचारा नाम ग्रामाकरादिषु विहारास्ते वक्तव्याः यथा कस्य भगवतः केषु ग्रामाकरादिषु विहार आसीदिति ।"
-आवश्यकनियुक्ति, मलयगिरि-टीका, पूर्व भाग, पत्र २०५।२ । इसमें टीकाकार ने भगवान् महावीर का नाम ही नहीं दिया है।
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