________________
वैदिक-ग्रन्थों में हरिणैगमेसी को कुछ स्थानों पर पुत्रदाता भी लिखा गया है। गृह्यसूत्र के एक मंत्र में आता है--
" हे नेगमेष ! उड़ जाओ और फिर उड़ कर यहाँ आओ और मेरी पत्नी के लिए एक सुन्दर पुत्र लाओ। मेरी पत्नी को पुत्र की कामना है। उसे गर्भ दो और गर्भ में पुत्र रहे !"
बाद के हिंदू-ग्रंथों में और वैद्यक ग्रंथों में उसे गर्भहर्ता के रूप में चित्रित किया गया गया है। पर जैन-साहित्य में उसका रूप सर्वत्र पुत्रदाता ही है । 'अन्तगडदसाओं' में कथा आती है कृष्ण ने भाई प्राप्त करने के लिए हरिनेगमेसी की उपासना की। देव के सम्मुख आने पर कृष्ण ने कहा
"इच्छामि णं देवाणुप्पिया सहोयरं कणीयसं भाउयं विइण्णं ।" ( कृष्ण ने कहा- "हे देवानुप्रिय ! मैं चाहता हूँ कि मेरी माता की कुक्षि मुझे छोटा भाई हो।" इस पर हरिनेगमेसी ने उत्तर दिया-" हे देवानुप्रिय ! तुम्हारी माता की कुक्षि से तुम्हें छोटा भाई होगा। वह देवलोक से च्यव करके आयेगा।
(अंतगडदसाओ, एन० वी० वैद्य, सम्पादित, पृष्ठ ११)
हिन्दू-ग्रन्थ में गर्भपरिवर्तन गर्भपरिवर्तन की ऐसी कथा हिन्दू-ग्रन्थों में भी मिलती है । श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में उल्लेख आता है कि कंस वसुदेव की संताने मार डालता था। विश्वात्मा भगवान् ने अपनी योगमाया को आदेश दिया
गच्छ देवि ब्रज भद्रे गोपगोभिरलङ्कृतम् । रोहिणी वसुदेवस्य भार्याऽऽस्ते नन्दगोकुले ॥ अन्याश्च कंससंविग्ना विवरेषु वसन्ति हि ॥७॥ देवक्या जठरे गर्भ शेषाख्यं धाम मामकम्। तत् सन्निकृष्य रोहिण्या उदरे सन्निवेशय ॥८॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org