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(११७) स्त्रियों को ही किसी प्रकार की पीड़ा होती है और न गर्भ को ही किसी प्रकार का क्लेश उत्पन्न होता है। इनमें चार प्रकार होते हैं--(१) गर्भाशय से गर्भाशय में आकर्षण और आमोचन (२) योनि से योनि में आकर्षण और आमोचन (३) योनि से गर्भाशय में आकर्षण और आमोचन (४) गर्भाशय से योनि में आकर्षण और आमोचन । इनमें तीसरे प्रकार से ही वह गर्भ का हरण करता है, अन्य से नहीं।
आगे विवरण में कहा गया है, यदेन्द्रो जिनजन्माद्युत्सवेषु गन्तुमिच्छिति ।
तदा वादयते घंटा, सुघोषां नेगमेषिणा ॥ (९४) -जब इन्द्र जिनेश्वर के जन्मादि उत्सवों में जाना चाहते हैं, तो उस समय इन्द्र नैगमेषी से सुधोषी नाम का घंटा बजवाते हैं। - कल्पसूत्र (सूत्र २०) में भी 'हरिणेगमसिं पाइत्ताणी आहिवई' (हरिनेगमेषिनामकं पदातिकटकाधिपति) हरिणंगमेसी को पैदल सेना का सेनापति लिखा गया है।
'जम्बूद्वीप प्रज्ञाप्ति' में हरिनेगमेषी के उल्लेख में आया है- ...
हरिणैगमेसिं पायत्ताणीयाहिवइं देवं सद्दावेन्ति'त्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! सभाए सुहम्माए मेघोघरसिकं गंभीरमहुरयरसदं जोयणपरिमंडलं सुघोसं सूसरं घंटं तिक्खुत्तो उल्लालेमाणे...
___ (वक्षस्कार ५, सूत्र ११५ पत्र ३६६-१) इसकी टीका करते हुए टीकाकार ने लिखा है
'तएणं से हरिणेगमेसी' इत्यादि, ततः स हरिणेगमेषी देवः पदात्यनीकाधिपतिः शक्रेण देवेन्द्रेण देवराज्ञा एवमुक्तः सन् हृष्ट इत्यादि यावदेवं देव इति आज्ञया विनयेन वचनं प्रतिश्रणोति प्रतिश्रुत्य च शक्रान्तिकात् प्रतिनिष्क्रामति प्रतिनिष्क्रम्य च यत्रैव सभायां सुधर्मायां मेघौघरसितगम्भीर मधुरतरशब्दा योजनपरिमंडला सुघोषाघण्टां तत्रैवो.
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