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(११५) जे० स्टिवेंसन ने तो 'हरिण' शब्द से और भी भ्रामक रूप लिया है। उन्होंने अपने कल्पसूत्र के अंग्रेजी अनुवाद (पृष्ठ ३८) में लिखा है- "हरिण से भी तेज दौड़ने के कारण उसे हरिणेगमेसी कहते हैं जे० स्टिवेंसन का यह मत न तो जैन-साहित्य से समर्थित है और अन्य धर्मों के साहित्य से।
इसी भ्रम को दूर करने के लिए कल्पसूत्र के बंगला अनुवादक श्री वसंतकुमार चट्टोपाध्याय ने (पृष्ठ १६) हरि और नैगमेषी के बीच में 'हाइफन' लगा कर विलग कर दिया है।
जैन-ग्रंथों में स्थानांग सूत्र सटीक ( सूत्र ५८२ ) ' में लिखा है
सक्कस्स एं देविंदस्स देवरन्नो सत्त अणिया सत्त अणियाहिवती पं तं०पायत्तारिणए जाव [ पीढाणिए ३ कुंजराणिए ४ महिसाणिए ५ रहाणिए ६ नट्टारिणए ] गंधव्वाणिए, हरिणेगमेसी पायत्ताणीयाधिपती जावमाढरे रधारिणताधिपति....
- इन्द्र की सात सेनाएं हैं-१ पैदल, २ अश्व, ३ गज, ४ वृषभ अथवा महिष ५ रथ, ६ नट्ट, ७ गंधर्व.
१- स्थानाङ्ग उत्तरार्द्ध पत्र ४०६-१ २- गंधव्व नट्ट हय गय रह भड अणियाणि सव्वइंदाणं । नेमाणियाम वसहा, महिसा य अहो निवासीणं ।। वृहत्संग्रहणीसूत्र, प्रासंगिक प्रकीर्णक अधिकार
गाथा ४६, पृष्ठ १२१ इसका स्पष्टीकरण करते हुए वृहत्संग्रहणी सूत्र में लिखा है कि गन्धर्व नट, अश्व, गज, रथ, भट ये सेनाएं सभी इन्द्रों की होती हैं। इनके अतिरिक्त वैमानिकों के पास वृषभ-सेना और अधोलोक वासियों के पास महिषसेना होती है।
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