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स्नान- पीठ पर बैठे। और, अनेक प्रकार के पुष्पों के रस- मिश्रित चन्दन, कर्पूर, कस्तूरी-युक्त, पवित्र, निर्मल, सुगन्धि ईषद उष्ण जल से कल्याणकारक विधि से स्नान किया । तदनन्तर सुगन्धित द्रव्यों से वासित वस्त्र से शरीर को पोंछ कर प्रधान वस्त्र धारण किये । गोशीर्ष चन्दन का विलेपन किया। पवित्र पुष्पमालाएं पहनीं । मणि, रत्न और सुवर्ण के बने हुए आभूषण पहने । अठारह, नव, तीन और एक लड़ी के हार गले में धारण किये। कीमती हीरों और मणियों से जड़े हुए मोतियों के लम्बे-लम्बे फुंदों सहित कमर में कटिभूषण पहना । हीरे, माणिक्य आदि के कंठे पहने । अंगुलियों में अंगूठियाँ पहनीं । अनेक प्रकार के मरियों से बने हुए, बहु मूल्यवान जड़ाऊ कड़े हाथों में तथा भुजाओं में पहने । इस प्रकार कुण्डलों से युक्त राजा का मुखमण्डल सुशोभित होने लगा । मुकुट से मस्तक दीपने लगा । अंगूठियों से अंगुलियाँ चमकने लगीं । जिस प्रकार कल्पवृक्ष पुष्प- पत्तों से अंलकृत होता है, उसी प्रकार सिद्धार्थ राजा आभूषणों से अलंकृत और वस्त्रों से विभूषित दिखने लगे। वह कोरंट-वृक्ष के श्वेत पुष्पों की माला से सुशोभित थे और मस्तक पर हुए थे । उज्जवल चामर झले जा रहे थे। चारों ओर लोग राजा की जयजयकार कर रहे थे । इस प्रकार सब तरह से अलंकृत होकर, गरणनायक (स्वस्व समुदाय स्वामिन-गरण का स्वामी ), दंडनायक ( तंत्रपालाः स्वराष्ट्रचिन्ताकर्ता - - तन्त्र का पालन करने वाला, अपने राष्ट्र को चिन्ता करने वाला), तलवर (तुष्टभूपाल प्रदत्त पट्टबन्ध विभूषित - वह अधिकारी जिस पर प्रसन्न होकर राजा ने उसे पट्टबंध से विभूषित किया हो ), राइसर [ रायराजा ( मांडलिक ) ईश्वर, युवराज ] मांडंबिक ( मडंब -स्वामिनः- -जिसके चारों ओर आधे योजन तक ग्राम न हो उसे मडम्ब कहते हैं और ऐसे मडंब के स्वामी माडम्बिक), कौटुम्बिक ( कतिपय कुटुम्ब स्वामिनः - कतिपय कुटुम्बों के स्वामी ), मन्त्री ( राज्याधिष्ठायकाः सचिवा: ), महामन्त्री (विशेषाधिकारवन्तः ) गरणक ( ज्योतिषिका: - ज्योतिषी ), दौवारिक (प्रतिहारा :द्वारपाल ) अमात्य ( सहजन्मो मंत्रिणः -- मन्त्री ), चेट (दास), पीठमर्दक (पीठे आसनं मर्दयन्तीति पीठमर्दक- आसन्न सेवकाः वयस्या इत्यर्थः, निकट
छत्र धारण किये
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