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(१२८) पुच्छा०, गोयमा ! मंडलियमायारो जाव एएसिं चोदसण्हं महासु० अन्नयरं एगं महं सुविणं जाव पडिबु० ( सूत्र ५७९ ) ___-व्याख्या प्रज्ञप्ति अभयदेवी-वत्ति भाग ३, शतक १६,
उद्देसा ६, पत्र १ ०४-१३०५ ... अर्थात्-हे देवानुप्रिय ! हे सिद्धार्थ राजन् ! हमारे स्वप्न-शास्त्र में सामान्य फल देनेवाले बयालिस और उत्तम फल देने वाले तीस महास्वप्न बतलाये हैं । ऐसे सब मिलाकर बहत्तर स्वप्न कहे हुए हैं। उनमें से अर्हत---- तीथंकर-की माताएँ और चक्रवर्ती की माताएँ जब तीर्थकर या चक्रवर्ती' का जीव गर्भ में आता है, तब तीस महास्वप्नों में से चौदह महास्वप्न देखती हैं। वासूदेव की माता जब वासूदेव का जीव गर्भ में आता है तब तीस महास्वप्नों में से सात महास्वप्नर देखती है। बलदेव की माता जब बलदेव का जीव गर्भ में आता है, तब उन तीस महास्वप्नों में से चार महास्वप्न देखती है। मांडलिक-देशाधिपति की माता जब मांडलिक का जीव गर्भ में १-(अ) सार्वभौमस्य मातापि स्वप्नानेतानिरीक्षते । किन्तु किंचिन्न्यूनकान्ती-नहनमातुरपेक्षया ॥५६॥
- श्रीकाललोकप्रकाश, सर्ग ३०, पृष्ठ १६८ (ब) चतुर्दशाप्यमून्स्वप्नान् या पश्येत्किचिदस्फुटान् ।
सा प्रभो प्रमदा सूते नन्दनं चक्रवर्तिनम् ।।१।।
-श्रीवर्धमान सूरिकृत श्री 'वासुपूज्य-चरित', सर्ग ३, पृष्ठ ८६ २-(अ) यामिन्याः पश्चिमे यामे सूचका विष्णुजन्मनः । देव्या ददृशिरे स्वप्नाः सप्तैते सुखसुप्तया ॥२१७॥ .
-त्रिषष्टिशलाका-पुरुष-चरित्र, पर्व ४, सर्ग १. (ब) १ सिंह, २ सूर्य, ३ कुम्भ, ४ समुद्र, ५ लक्ष्मी, ६ रत्नराशि ७ अग्नि-ये सात स्वप्न वासुदेव की माता देखती है।
--सेन प्रश्न, पृ. ३७६ ३-(अ) ददर्श सुखसुप्ता च यामिन्याः पश्चिमे क्षणे। चतुरः सा महास्वप्नान् सूचकान् बलजन्मनः ॥ १६८।।
-श्री त्रिषष्टिशलाका-पुरुष-चरित्र, पर्व ४, सर्ग १. (ब) १ हाथी, २ पद्मसरोवर, ३ चन्द्र, ४ वृषभ ये चार स्वप्न
बलदेव की माता देखती है। -सेन प्रश्न, पृष्ठ ३७६ (क) चतुरो बलदेवाम्बाथ.........॥५६।।।
. -श्रीकाललोकप्रकाश सर्ग ३०, पृष्ठ १६६
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