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(१२४) इसके बाद राजा सिद्धार्थ ने व्यायामशाला से निकलकर मोतियों से व्याप्त गवाक्षवाले, अनेक प्रकार के चन्द्रकान्तादि तथा वैडूर्यादि रत्नों से खचित आंगनवाले मज्जन-घर ( स्नानगृह) में प्रवेश किया। मरिण-रत्नों से युक्त
. (पृष्ठ १२३ की पाद टिप्पणी का शेषांश ) शाला'-व्यायामशाला--का उल्लेख ज्ञाताधर्मकथा (एन० वी० वैद्य-सम्पादित) पृष्ठ ६; भगवती सूत्र शतक ११, उद्देसा ११, पत्र ९८६-२; औषपातिक सूत्र सूत्र ३१ (पत्र १२२-२) में तथा 'व्यायाम' का उल्लेख औपपातिकसूत्र सूत्र ३१ (पत्र १२२-१), ज्ञाताधर्मकथा पृष्ठ ६, राजप्रश्नीय (बाबूवाली) पृष्ठ ३२, स्थानांग १,१ में आता है । जैन-आगमों में कुश्ती लड़ने के अखाड़े का भी उल्लेख है । राजप्रश्नीय ( बेचरदास-सम्पादित) पत्र ६७ तथा २१५-भगवती सूत्र शतक ६,५ (बेचरदास-सम्पादित पृष्ठ ३०७) तथा स्थानांग ४, २ (पत्र २३०, १), में आता है।
भगवान् ऋषभदेव ने अपने गृहस्थ-जीवन में ७२ कलाएं बतायी है। उनमें भी मल्लयुद्ध, बाहुजुद्ध, मुट्ठिजुद्ध धनुर्वेद आदि युद्ध तथा युद्ध-कला, व्यूहरचना आदि के उल्लेख है । स्पष्ट रूप से इनका सम्बेधन शारीरिक पुष्टि से है। ". जैन-शास्त्रों में भी व्यायाम को कुछ कम महत्व नहीं दिया है और व्यायाम को गृहस्थों की दिनचर्या का आवश्यक अंग बताया गया है। : ... बात स्पष्ट है कि जब तक शरीर पुष्ट नहीं होगा, व्यक्ति न तो व्यावहारिक सिद्धि प्राप्त कर सकता है और न धार्मिक ही। बिलो शरीर की पुष्टि के (रोगी शरीर से) देवपूजा, सामयिक, प्रतिक्रमण, पौषध, उपधान आदि धार्मिक कृत्य कोई भला क्या कर सकेगा। जैन-शास्त्रों में कहा गया है 'जे कम्मे सूरा, ते धम्मे सूरा।' २-(अ) 'खुरली तु श्रमो योग्याऽभ्यासः
. -अभिधान-चिन्तामणि, काण्ड ३, श्लोक ४५२, पृ. ३१५ __(आ) योग्या-शस्त्राद्यभ्यासः-कल्पसूत्र दीपिका पत्र ५२।२
३-कुमारपाल-चरित्र ( प्राकृत द्वयाश्रय काव्य ) हेमचन्द्राचार्य रचित (बाम्बे-संस्कृत-सिरीज ) पृष्ठ २६९ (८-१७), ३२४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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