________________
(११६) और उनके सेनापति हैं :-हरिनैगमेषी २ वायु ३ ऐरावण ४ दद्धि ५ माठर ६ श्वेत और ७ तुंबरु । .. इन्द्र की पदाति सेना के ७ कक्ष हैं और एक कक्ष में ८४,००० देव हैं। शेष उत्तरोत्तर दूना करते जाना चाहिए।
लोक प्रकाश (सर्ग २६, पत्र ३३४-२, ३३५-१) में हरिनगमेषी का कार्य बताते हुए लिखा गया है :
सप्तानामप्यथतेषां, सैन्यानां सप्त नायकाः । . सदा सन्निहिताः शक्रं विनयात् पर्युपासते ॥ ८० ॥ ते. चैवं नमतो वायु रैरावणश्च माठरः । ३ । स्याद्दमर्द्धि हरिनगमेषी श्वेत श्च तुम्बरुः ॥ ८१ ॥ पादात्येशस्तत्र हरिनैगमेषीति विश्रुतः । शक्रदूतोऽति चतुरो, नियुक्तः सर्व कर्मसु ॥ ८४ ॥ योऽसौ कार्यविशेषेण देवराजानुशासनात् । कृत्वा मङ्क्ष त्वचश्च्छेदं रोमरन्धेर्नखांकुरैः ॥ ८५ ।। संहर्तुमीष्टे स्त्रीगर्भ, न च तासां मनागपि । पीडा भवेन्न गर्भस्याप्यसुखं किंचिदुद्भवेत् ।। ८६ ॥ तत्र गर्भाशयागर्भाशये योनौ च योनितः । योनेर्गर्भाशये गर्भाशयाद्योनाविति क्रमात् ॥ ८७ ।। आकर्षणामोचनाभ्यां चतुर्भङ्गयत्र संभवेत् । तृतीयेनैव भङ्गेन गर्भ हरति नापरैः ॥ ८८ ॥
(इन्द्र की) इन सात सेनाओं के सात नायक होते हैं, जो सर्वदा उनके पास ही रहते हैं और विनय पूर्वक उनकी उपासना करते हैं। उनके नाम हैं१ वायु २ ऐरावण ३ माठर ४ दद्धि, ५ हरिनगमेषी, ६ श्वेत और ७ तुम्बरु । उनमें पैदल सेनाओं का सेनापति हरिनगमेषी नाम से प्रसिद्ध है। वह इन्द्र का अत्यन्त चतुर दूत सभी कार्यो में नियुक्त किया जाता है जो कार्य विशेष से, इन्द्र की आज्ञा से रोम के छेदों से और नख के अंकुरों से शीघ्र त्वचा छेद करके स्त्री-गर्भ का हरण करने में समर्थ होता है। न तो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org