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पलास उज्जारण' एक ही थे । डाक्टर साहब ने जिन ग्रन्थों के प्रभार दिए हैं, उनके अनुसार 'दूइपलास उज्जारण' तो वाणिज्यग्राम के उत्तर-पूर्व में था और 'नायसण्ड उज्जारण' ( ज्ञातखण्डवन उद्यान ) कुण्डपुर ( क्षत्रियकुण्ड ) के
बाहर था ।
( क ) विपाकसूत्र में लिखा है
तस्स गं वाणियगामस्स उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए दूईपलासे नामं उज्जाणे होत्था ।
- बिवागसुयं, पृष्ठ १६ ( ख ) कल्पसूत्र सुबोधिका टीका ( निर्णयसागर प्रेस ) पत्र २८१, में लिखा है
कुण्डपुरं नगरं मज्मं मज्मेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव नायसंडवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ ।
इन दोनों उद्धरणों से स्पष्ट है कि, 'नाय संडवरण' और 'दुइपलसाउज्जाण दोनों भिन्न-भिन्न थे ।
( ५ ) डाक्टर हारनेल और डाक्टर याकोबी दोनों ने ही सिद्धार्थ को राजान मान कर 'अमीर' अथवा 'सरदार' माना है। उनका विचार है कि, दोएक स्थानों के अतिरिक्त ग्रंथों में सिद्धार्थ के साथ 'क्षत्रिय' शब्द का ही प्रयोग किया गया है । परन्तु, इसके विपरीत जैन ग्रंथों में न केवल सिद्धार्थ को राजा कहा गया है, अपितु उसके अधीनस्थ अन्य कर्मचारियों का भी वर्णन किया गया है— 'कल्पसूत्र' में लिखा है
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"तए से सिद्धत्थे राया तिसलाए खत्तियाणीए..."
इसमें सिद्धार्थ को राजा बतलाया गया है ( कल्पसूत्र, सूत्र ५१) आगे चलकर सूत्र ६२ में लिखा है
" scrore far अलंकियविभूसिए नरिंदे, सकोरिंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धब्बमाणीहिं मंगलजयसद्दकयालोए अणेगगणनायग - दंडनायग - राईसर - तलवर
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