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(१०७) जो त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भ था, उसको दक्षिण ब्राह्मण कुण्डपुर सन्निवेश में रहे हुए कोडाल गोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी जालन्धर गोत्रीया देवानन्दा की कुक्षि में गर्भरूप से रक्खा ।
(४) "हरी गंभंते ! हरिणेगमेसी सक्क हुए इत्थीगभं संहरमाणे किं गब्भाओ गब्भं साहरइ १, गब्माओ जाणिं साहरइ २, जोणीओ गब्भं साहरइ ३, जोणीओ जोणिं साहरइ ४ । गोयमा ! नो गब्भाओ गभं साहरइ, नो गब्भाओ जोणि साहरइ, नो जोणीओ जोणिं साहरइ, परामुसिय परामुसिय अव्वाबाहेणं अव्वाबाहं जोणीओ गब्भं साहरइ।। पभू णं भंते ! हरिणेगमेसी सकस्स णं दूए इत्थीगभं नहसिरंसि वा रोमकूवंसि वा साहरित्तए वा नीहरित्तए वा १, हंता पभू, नो चेव णं तस्स गब्भस्स किंचिवि आबाहं वा विवाहं वा उप्पाएज्जा छविच्छेदं पुण करेज्जा, ए सुहुमं च णं साहरिज्ज वा ॥ (सूत्र १८७)
—व्याख्याप्रज्ञप्ति ( भगवती सूत्र) - शतक ५ उद्देश ४ पत्र, २१८।१
- हे भगवन् ! इन्द्र-सम्बन्धी हरिनैगमेषी शक्रदूत जब स्त्री के गर्भ का संहरण करता है, तब क्या एक गर्भाशय में से गर्भ को लेकर दूसरे गर्भाशय में रखता है ? गर्भ से लेकर योनि द्वारा दूसरी स्त्री के गर्भ में रखता है ? योनि से गर्भ को निकाल कर दूसरे गर्भाशय में रखता है ? या योनि द्वारा गर्भ को निकाल कर फिर उसी तरह ( अर्थात् योनि द्वारा ही) उदर में रखता है ?
हे गौतम ! देव एक गर्भाशय में से गर्भ को लेकर, दूसरे गर्भाशय में नहीं रखता है, गर्भ को लेकर योनि द्वारा भी दूसरी स्त्री के उदर में नहीं रखता है। योनि द्वारा गर्भ को लेकर फिर योनि द्वारा उदर में नहीं रखता; लेकिन अपने हाथ से गर्भ को स्पर्श कर उस गर्भ को कष्ट न हो उस तरह योनि द्वारा बाहर निकाल कर दूसरे गर्भाशय में रखता है ।
हे भगवन् ! शक का दूत हरिनैगमेषी-देव स्त्री के गर्भ को नख के अन भाग से या रोंगटे के छिद्र से भीतर रखने में समर्थ है ?
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