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( १ ) समवायाङ्ग-सूत्र, समवाय ८३ ( पत्र ८३ -२ ) में उल्लेख है" समणे भगवं महावीरे बासीइराइदिएहिं वीइक्कंतेहिं तेयासीइमे राइदिए वट्टमाणे गव्भाओ गव्भं साहरिए ...
रात्रि दिवस बीतने के
अर्थात् - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ८२ बाद ८३- वें रात्रि-दिवस में एक गर्भ से दूसरे गर्भ में ले जाये गये । समवायांग के अतिरिक्त अन्य सूत्रोंमें उसका उल्लेख निम्नलिखित रूपमें मिलता है
(२), समणे भगवं महावीरे पंच हत्युत्तरे होत्था - हत्थुत्तराहिं चुए चइत्ता गंब्भं वक्कंते हत्थुत्तराहिं गब्भाओ गंब्भं साहरित हत्थुत्तराहिं जाते हृत्थुत्तराहिं मुण्डे भवित्ता जाव ... (सूत्र ४११, भाग २, पत्र ३०७-१)
टीका – 'समणे – त्यादि, हस्तोपलक्षिता उत्तरा हस्तो वोत्तरो यासां ता हस्तोत्तराः- उत्तराः फाल्गुन्यः, पञ्चसु च्यवनगर्भहरणादिषु हस्तोत्तरा यस्य स तथा 'गर्भात्' गर्भस्थानात् 'गर्भ' न्ति गर्भे गर्भस्थानान्तरे संहृतो- नीतः, .......”
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- स्थानाङ्ग भाग २, स्थान ५, पत्र ३०८-१ -- श्रमण भगवान् महावीर की ५ वस्तुएं उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में हुई । उसी नक्षत्र में उनका च्यवन, गर्भापहरण, जन्म, दीक्षा और केवल-ज्ञान हुए । '
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. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे दाहिण माहरण कुण्डपुर संनिवेसंसि उसभदत्तस्स माहणस्स कोडाल स गोत्तस्स देवानंदाए माहणीए जालंधरायणसगोत्ताए सीहब्भवभूषणं अप्पारोणं कुच्छिसि गब्र्भ वक्ते, समणे भगवं महावीरे तिष्णाष्णोवगए यावि
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१- कुछ लोग स्थानांग में वरिणत भगवान् महावीर के ५ स्थानों को ५ कल्याणक मान लेते हैं । यह सर्वथा भ्रामक है । स्थान का अर्थ कल्याणक नहीं हो सकता ।
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