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(६०) "नायाण खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तिअस्स कासवगुत्तस्स"
-श्री कल्पसूत्र, सूत्र २६, .. उनका वंश ज्ञातृवंश था, जो कि, इक्ष्वाकु-वंश का ही नामान्तर है । 'ज्ञातृवंश' का अर्थ आवश्यक चूणि में 'वृषभ स्वामी के परिवार के लोग' किया गया है। जाता णाम जे उसमसामिस्स सणिज्जगा ते णातवंसा।
-आवश्यक चूणि, भाग १, पत्र २४५ । - जिनप्रभसूरि कृत 'कल्पसूत्र' की 'सन्देह-विषौषधि-वृत्ति' (पत्र ३०, ३१) में भी इसका यही अर्थ किया गया है :
" तत्र ज्ञाताः श्रीऋषभस्वजनवंशजाः इक्ष्वाकु-वंश्या एव" "ज्ञाता इक्ष्वाकुवंशविशेषाः।"
कुछ भ्रान्त धारणाएँ
डाक्टर हारनेल तथा डाक्टर याकोबी ने जैनशास्त्रों की विवेचना करते हुए कुछ भ्रान्त धारणाओं की स्थापनाएँ की हैं। डाक्टर हारनेल के मतानुसार- (१) वाणियागाम (संस्कृत-वाणिज्यग्राम) यह वैशाली के नाम से प्रसिद्ध नगर का दूसरा नाम था। --'महावीर तीर्थंकर नी जन्मभूमि' (डा० हारनेल का लेख)
जैन-साहित्य-संशोधक खण्ड १, अंक ४, पृष्ठ २१८ । (२) कुण्डग्राम नाम भी वैशाली का ही था और वैशाली ही भगवान् को जन्मभूमि थी।
-डाक्टर हारनेल का उपर्युक्त लेख
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