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(५२) (पृष्ठ ५१ की पादटिप्पणि का शेषांश) उत्तराध्ययन की नेमिचन्द्राचार्य की टीका ( अध्याय ६, पत्र १४१) में पुण्ड्रवर्धन नगरका नाम आया है। यह भी वस्तुतः पुष्कलावती का ही दूसरा नाम है। जैन-ग्रन्थोंमें 'पुक्खली' शब्दका भी प्रयोग मिलता है ( दशवकालिक चूर्णि, पत्र २१२-२१३)। यह पुक्खली भी वस्तुतः पुष्कलावती का दूसरा नाम है।
'आइने-अकबरी' में भी 'पुक्खली' नाम आया है। 'जेर-पेश' में भूल करके सर जदुनाथ सरकार ने अपने अनुवाद खण्ड २, पृष्ठ ३६७ में इसे पक्सली लिख दिया है। उसकी सीमा 'आइने-अकबरी' में इस प्रकार बतायी गयी है। पूर्व में काश्मीर, उत्तर में कटोर, दक्षिण में गखर, और पश्चिम में अटक-बनारस ।
जैन-शास्त्रों में नग्गती राजाका वर्णन मिलता है और उनकी राजधानी पुरुषपुर बतायी गयी है ( उत्तराध्ययन चूणि, अ. ६, पत्र १७८ )। और, तक्षशिला के सम्बन्ध में चर्चा आती है कि उसे भरत के
भाई बाहुबलीने बसाया था (वसुदेवहिण्डी, खण्ड १, पृष्ठ १८६-१८७) (४) कम्बोज भी उत्तरापथमें पड़ता था । जैन-ग्रन्थों में उत्तराध्ययन सूत्र
नेमिचन्द्राचार्यवृत्ति ( ११, १६ पत्र १६६-२) तथा राजप्रश्नीय ( कंडिका १६०, पत्र ३०१ ) में भी कम्बोज का उल्लेख मिलता है। बौद्ध-ग्रन्थों में इसकी राजधानी द्वारका बतायी गयी है। ( रीज-डेविस कृत 'बुद्धिस्ट इण्डिया', पृष्ठ २१ ) जिसकी पहचान दरवाज से की जाती है ( सार्थवाह, पृष्ठ ११)। जयचन्द्र विद्यालङ्कार ने अपनी पुस्तक "भारतीय इतिहासकी रूपरेखा', भाग १ (पृष्ठ ४७५) में लिखा है कि “गलचा क्षेत्रको कम्बोज माना जा सकता है।" राय चौधरी ने अपनी पुस्तक 'पोलिटिकल हिस्ट्री आव ऐंशेंट इण्डिया' (पाँचवाँ संस्करण, पृष्ठ १४६) में लिखा है, “कम्बोजका जो विवरण मिलता है, वह युआनच्वाङ् के राजपूर के विवरणसे बहुत मेल खाता है ।" 'वैदिक-इंडेक्स' भाग १ में
दिये नक्शे में कम्बोज को गंधार से उत्तर में दिखाया गया है। (५) अंगुत्तरनिकाय खण्ड १, पृष्ठ २१३; खण्ड ४; पृष्ठ २५२, २५६,
२६० । -संयुक्त निकाय (महाबोधि सभा, सारनाथ) प्रथम भाग, भूमिका पृष्ठ १.
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