________________
परंतु, इस 'अट्ठकुलका' शब्द का वज्जी-संघ के कुलों से कोई सम्बन्ध नहीं था- यह 'अष्टकुलिक' शब्द वस्तुतः 'न्याय की समिति' के लिये व्यवहार में आया है। (')
डाक्टर वी० ए० स्मिथ ने लिच्छिवियों को तिब्बती (२) लिखा है और डाक्टर सतीशचंद्र विद्याभूषए के उन्हें ईरानी (3) बताया है। इन दोनों की मान्यताएँ भ्रमपूर्ण हैं । लिच्छिवि विशुद्ध क्षत्रिय थे—यह बात पूर्णरूप से निर्विवाद है। (१)
बुद्ध के निधन के बाद, जब अस्थि लेने के लिए विभिन्न राष्ट्रों के लोग उपस्थित हुए, तो लिच्छिवियों ने स्वयं अपने सम्बन्ध में कहा था--
"भगवा पि खत्तियो, मयं पि खत्तिया मयं पि अरहाम भगवतो सरीरानं भागं मयं पि भगवतो सरीरानं थूपं च महं च करिस्सामा" ति ।
__दीघनिकाय, खण्ड २ (महावग्गो), पृष्ठ १२६ । "भगवान् भी क्षत्रिय (थे), मैं भी क्षत्रिय (हूँ), भगवान के शरीरों (=अस्थियों) में मेरा भाग भी वाजिब है । मैं भो भगवान के शरीरों का स्तूप बनवाऊँगा और पूजा करूँगा।"५
लिच्छियों का गोत्र वाशिष्ठ था। महावस्तु में आता है कि, बुद्ध ने लिच्छिवियों के लिए--"वाशिष्ठ गोत्र वालों..." का प्रयोग किया था। (१) दीधनिकाय, राहुल-जगदीश-कृत हिन्दी अनुवाद, पृष्ठ ११८ । (२) 'इंडियन ऐंटीक्वैरी', १६०३, पृष्ठ २३३ । (३) इंडियन ऐंटीक्वैरी', १६०८, पृष्ठ ७६ । (४) महावस्तु, जे० जे० जेन्स-कृत अंग्रेजी अनुवाद, भाग १, पृष्ठ २०६। (५) दीधनिकाय, राहुल सांकृत्यायन तथा जगदीश काश्यप कृत हिन्दी
अनुवाद, पृष्ठ १५०, महापरिनिब्बान सुत्त, स्तूप-निर्माण। (६) महावस्तु, जे० जे० जेन्स-कृत अंग्रेजी-अनुवाद, भाग १, पृष्ठ २२५,
२३५, २४८ ।
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org