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सो संघाराम हैं; परन्तु सब-के-सब खंडहर हो गये हैं । तीन या पांच ऐसे हैं जिनमें बहुत-ही कम संख्या में साधु रहते हैं । दस-बीस मन्दिर देवताओं के हैं, जिनमें अनेक मतानुयायी उपासना करते हैं। जैन धर्मानुयायी काफी संख्या में है।
"वैशाली की राजधानी बहुत-कुछ खंडहर है। पुराने नगर का घेरा ६० से ७० 'ली' तक है और राजमहल का विस्तार ४-५ 'ली' के घेरे में है । बहुत थोड़े-से लोग इसमें निवास करते हैं । राजधानी से पश्चिमोत्तर ५-६ 'ली' की दूरी पर एक संघाराम है । इसमें कुछ साधु रहते हैं । ये लोग सम्मतीय संस्था के अनुसार हीनयान-सम्प्रदाय के अनुयायी है।' क्षत्रियकुण्ड ___ बसाढ़ के निकट वासुकुण्ड स्थान है, जो प्राचीन कुण्डपुर (जिसमें क्षत्रियकुण्ड और ब्राह्मणकुण्ड दो भाग थे) का आधुनिक नाम है । जैन-शास्त्रों में इसका स्थान-निर्देश करते हुए लिखा है१--अस्थि इह भरहवासे मज्झिमदेसस्स मण्डणं परमं । सिरिकुण्डगामनयरं वसुमइरमणीतिलयभूयं ॥७॥
--नेमिचन्द्रसूरिकृत महावीरचरियं, पत्र २६ भारत के मज्झिम (मध्य) देश में कुण्डग्राम नगर है ।
२--जम्बूद्दीवे णं दीवे भारहे वासे....दाहिणमाहिणकुडपुरसंनिवेसाओ उत्तरखत्तियकुडपुरसन्निवसंसि नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगुत्तस्स तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठसगुत्ताए असुभाणं पुग्गलाणं अवहारं करित्ता सुभाणं पुग्गलाणं पक्खेवं करित्ता कुच्छिसि गब्भं साहरइ।
--आचाराङ्गसूत्र (टीका सहित), पत्र ३८८ जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में दक्षिण ब्राह्मणकुण्डपुरसन्निवेश से (चलकर) '(१) 'बुद्धिस्ट रेकार्ड आव वेस्टर्न वर्ल्ड', द्वितीय खण्ड, पृष्ठ ६६-६७ ।
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