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(७३) ७ वैशाल्यधिष्ठानाधिकरण । -वैशाली नगरी के राज्य-शासन का कार्यालय । __जनश्रुति के अनुसार, वहाँ बावन पोखरे (पुष्करिणियाँ) थे। परन्तु, कनिंघम ५२ में केवल १६ का पता पा सके । वैशाली के राजाओं के राज्याभिषेक के लिए इन पोखरों का जल काम में लाया जाता रहा होगा। बनिया और चकरामदास
बसाढ़ गढ़ के उत्तर-पश्चिम में, लगभग एक मील की दूरी पर, बनिया गांव है, इसका दक्षिणी भाग चकरामैदास है। एच० बी० डब्ल्यू० गैरिक ने यहाँ प्राप्त दो प्रस्तर मूर्तियों का उल्लेख किया है--जो माप में २'-२"x १४"४३" और १-१०' x १'X३' थीं। यहाँ सिक्के, मृत्तिका-पात्र आदि भी प्राप्त हुए हैं । यहाँ मिली वस्तुओं में मिट्टी का बना दीवट भी है। गले के आभूषण भी यहाँ मिले हैं। गढ़ और चकरमदास के बीच लगभग. आधा मील लम्बा पोखर है, जो घुड़दौड़ के नाम से प्रसिद्ध है। चकरामदास के दक्षिण-पश्चिम में कुछ ऊँचे स्थल हैं, जिन पर प्राचीन खंडहर हैं।
कोलुआ
गढ़ से उत्तर-पश्चिम में लगभग १ मील की दूरी पर कोलुआ नामक स्थान में अशोक का स्तभ (बखरा से दक्षिण-पूर्व दिशा में १ मील की दूरी पर),. स्तूप, मर्कटह्रद (आधुनिक नाम-रामकुण्ड) है। वैशाली के सम्बन्ध में युवान च्वांङ ने जो वर्णन लिखा है, उनसे इन सब स्थानों का ठीक-ठीक मेल बैठता है। युआन च्वांङ ने वैशाली के राज-प्रासाद की परिधि ४-५ 'ली' लिखी है। वर्तमान गढ़ की परिधि ५००० फुट से कुछ कम है। ये दोनों स्थितियाँ एक-दूसरे के अत्यंत निकट हैं । युआन च्वाङ ने लिखा है"उत्तर-पश्चिम में अशोक द्वारा बनवाया हुआ एक स्तूप है और ५०-६० फुट ऊँचा पत्थर का एक स्तम्भ है, जिसके शिखर पर सिंह की मूर्ति है। स्तम्भ के दक्षिण में एक तालाब है । जब बुद्ध इस स्थान पर रहते थे, तब उनके ही उपगोग के लिए यह निर्मित किया गया था। पोखर से कुछ दूर पश्चिम
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