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(७४) में एक दूसरा स्तूप है । यह उस स्थान पर बना है, जहाँ बन्दरों ने बुद्ध को मधु अर्पित किया या । पोखर के उत्तर-पूर्व कोने पर बन्दर की एक मूर्ति है।"
आजकल की स्थिति यह है कि, कोलुआ में एक स्तम्भ है, जिस पर सिंह की मूर्ति है; इसके उत्तर में अशोक द्वारा निर्मित स्तूप है; स्तूप के दक्षिण की ओर रामकुण्ड के नाम से प्रसिद्ध पोखर है, जो कि बौद्ध-इतिहास में "मर्कट-ह्रद' के नाम से ज्ञात है।
यहाँ की जनता अशोक-स्तम्भ को 'भीम की लाठी' कहती है। यह भूमि से २१ फुट ६ इंच ऊँचा है। स्तम्भ का शीर्ष भाग घंटी के आकार का है
और २ फुट १० इंच ऊँचा है। इसके ऊपर एक प्रस्तर-खण्ड पर उत्तराभिमुख सिंह बैठा है। जनरल कनिंघम ने १४ फुट नीचे तक इसकी खुदाई की थी और तब भी स्तम्भ उन्हें उतना ही चिकना मिला था, जितना कि, वह ऊपर है। स्तम्भ से उत्तर में २० गज की दूरी पर एक ध्वस्त स्तूप है । यह १५ फुट ऊँचा है। धरती पर इसका ब्यास ६५ फुट है। इसमें लगी ईंटों का आकार १२"X "X२॥" है। स्तूप के ऊपर एक आधुनिक मन्दिर है, इसमें बोधिवृक्ष के नीचे भूमिस्पर्श-मुद्रा में बैठी बुद्ध की एक विशाल मूर्ति है, जो मुकुट, हार और कर्णाभूषण पहने है। बुद्ध के सिर के दोनों ओर बैठी मूर्तियाँ मुकुट और आभूषण पहने हैं। उनके हाथ इस प्रकार हैं, मानों बे प्रार्थना कर रही हों। इन दोनों छोटी मूर्तियों में प्रत्येक के नीचे निम्नलिखित पंक्तियाँ नागरी में लिखी हैं :
१ देयधर्मोऽयम् प्रवरमहायानयायिनः करणिकोच्छाहः ( = उत्साहस्य) मा (f) णाक्य-सुतस्य. ___२ यदत्रपुण्यम् तद् भवत्वाचार्योपाध्याय-मातापितोरात्मनश्च पूर्वगमम (कृ)___३ त्वा सकल-स (त् ) त्वराशेरनुत्तर-ज्ञानावाप्तयैति।" (१) "बुद्धिस्ट रेकार्ड आव वेस्टर्न इंडिया", द्वितीय खण्ड, पृष्ठ ६७-६८
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