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(६६) स्मिथ महोदय का अन्तिम तर्क पूर्णतः अकाटय है।
भारत के पुरातत्त्व-विभाग ने बसाढ़ की जो खुदाई की है, उससे वैशाली की स्थिति में किञ्चित् मात्र शंका की गुंजाइश नहीं रह जाती। खुदाई में प्राप्त मुहरों में स्पष्ट रूप से 'वैशाली' नाम आया है और एक मुहर ऐसी भी मिली है, जिसमें वैशाली के साथ 'कुण्ड' शब्द भी जुटा है। उस पर लिखा है :
'वेशाली नाम कुंडे कुमारामात्याधिकरण (स्य)'' वज्जीगणतंत्र' की राजधानी वैशाली थी। इस देश के शासक लिच्छिवि क्षत्रिय थे और वे गंगा के उत्तर विदेह देश में बसते थे । कुछ जैन लोग लछुआर ( जिला मुंगेर, मोदागिरि ) को लिच्छिवियों की राजधानी मानते रहे हैं। पर आगे दिये गये प्रमाणों के प्रकाश में पाठक स्वयं अपनी बुद्धि से निर्णय कर सकते हैं कि उनकी धारणा कितनी भ्रामक है :
१-राजेन्द्रसूरि-स्मारक-ग्रन्थ, 'महावीर की वास्तविक जन्मभूमि' योगेन्द्र मिश्र-लिखित, पृष्ठ ५८४ ।
२-लिच्छिवि और विदेहों के राष्ट्र का नाम 'वज्जी' था। वज्जी कोई अलग जाति नहीं थी। 'महापरिनिब्बान सुत्त' की टीका में लिखा है। :
'रठस्स पन वज्जी समा ' अर्थात् वज्जी राष्ट्र का नाम था।
३-'दिव्यावदान' में इसका रूप 'लिच्छवी' है; परन्तु 'महावस्तु' में इसी को 'लेच्छवी'-रूप में लिखा है । बौद्ध-ग्रन्थों का जो अनुवाद चीनी-भाषा में हुआ है, उनमें लिच्छवि के लिए जो चीनी शब्द प्रयुक्त हुए हैं, उनसे 'लिच्छवी' और 'लेच्छवी' दोनों रूप होते हैं। सूत्रकृताङ्ग' और 'कल्पसूत्र' आदि जैन-शास्त्रों में इसका प्राकृत-रूप 'लेच्छई' है, जिसका टीकाकारों के अनुसार संस्कृत-रूप 'लेच्छकी' होता है। कुल्लूकभट्ट और राघवानन्द बंगाली टीकाकारों ने इसे 'निच्छिवि' लिखा है, जो कि सम्भवतः प्राचीन बंगला के 'ल' और 'न' के सादृश्य से भ्रांति हो गयी प्रतीत होती है। मनुसंहिता में जाली और बुहलर दोनों ने 'लिच्छिवि' पाठ रखा है (देखो 'ट्राइब्स इन ऐंशेंट इंडिया', पृष्ठ २६४-२६६)। कुल्लूक भट्ट से मेधातिथि ६०० वर्ष पूर्व
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