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(५) नाम से विख्यात है" (विमलचरण लॉ-लिखित 'इण्डिया ऐज डेस्क्राइब्ड इन अर्ली टेक्स्ट्स आव बुद्धिज्म ऐंड जैनिज्म', पृष्ठ १)।
आधुनिक भारतवर्ष को ही बौद्ध लोग जम्बूद्वीप की संज्ञा से सम्बोधित करते थे। यही मत ईशानचन्द्र घोष ने जातक प्रथम खण्ड में (पृष्ठ २८२), जयचन्द्र विद्यालङ्कार ने 'भारतीय इतिहास की रूपरेखा' भाग १ में (पृष्ठ ४), टी० डब्ल्यू. रीस डेविस तथा विलियम स्टेड ने 'पाली इंग्लिश डिक्शनरी' (पृष्ठ ११२) में व्यक्त किया है। धर्मरक्षित की 'सुत्तनिपात' की भूमिका (बुद्धकालीन भारत का भौगोलिक परिचय) के पृष्ठ १ से तथा जातक में भदंत आनंदकौसल्यायन द्वारा दिये गये. मानचित्र से भी यही बात समर्थित है।
- इसका अभिप्राय यह हुआ कि जैन और वैदिक जहाँ सुमेरु को जम्बूद्वीप के केंद्र में मानते हैं, वहाँ बौद्ध उसे चारों द्वीपों के केन्द्र में मानते हैं और जहाँ जन और वैदिक भारतवर्ष को जम्बूद्वीप का एक क्षेत्र' (खण्ड) मानते हैं, वहाँ बौद्ध उसे ही जम्बूद्वीप को संज्ञा देते हैं। जम्बूद्वीप के सम्बन्ध में श्री विमलचरण लॉ ने लिखा है
“जहाँ तक जम्बूद्वीप पन्नति तथा उस पर अवलम्बित अन्य ग्रंथों में जम्बूद्वीप को वर्षों (देशों) में विभाजन की बात है, वह पुराणों के पूर्णतः अनुरूप है। ('इंडिया ऐज डेस्क्राइब्ड इन अर्ली टेक्स्ट्स आव बुद्धिज्म ऐंड जैनिज्म', पृष्ठ १-२).
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