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(२४) युगल अपनी युगल संतान को ताड़ के वृक्ष के नीचे रखकर, रमरण करने की इच्छा से कदली- गृह में गया। हवा के झोंके से ताड़ का एक फल बालक के सिर पर गिरा और वह मर गया । अब बालिका माता-पिता के पास अकेली रह गयी। थोड़े दिनों के बाद बालिका के माता-पिता का भी देहान्त हो गया । बालिका वनदेवी की तरह वन में अकेली घूमने लगी । देवी की तरह सुन्दर रूपवाली, उस बालिका को युगल - पुरुषों ने आश्चर्य से देखा और फिर वे उसे नाभि कुलकर के पास ले गये । नाभि कुलकर ने उन लोगों के अनुरोध से बालिका को यह कह कर रख लिया कि, भविष्य में यह ऋषभ की पत्नी बनेगी ' । इस कन्या का नाम सुनन्दा रखा गया ।
कालान्तर में २० लाख पूर्व कुमारावस्था में रहने के बाद, ऋषभदेव का सुमंगला और सुनन्दा के साथ विवाह हुआ । यह इस अवसर्पिणी में विवाह -
व्यवस्था का प्रारम्भ था ।
ऋषभदेव का विवाह हो जाने के पश्चात्, नाभिराज से अनुमति लेकर युगलियों ने ऋषभदेव का राज्याभिषेक करने का निश्चय किया । युगलिये अभिषेक के लिए जब जल लाने गये, तब इन्द्र ने आकर भगवान् को सुन्दरतम वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके, उनका अभिषेक कर दिया । अभिषेक के पश्चात् युगलिये कमल - पत्र में जब जल लेकर लौटे, तो उन्होंने भगवान् के उत्तमोत्तम वस्त्राभूषणों पर जल डालना उचित न समझ कर, उनके चरणों पर ही जल अर्पित कर दिया । उन युगलियों के इस विनीत-रूप को देख कर इन्द्र ने कुबेर को एक नगरी बसाने की आज्ञा दी । और, उसका नाम 'विनीता' रखने को कहा और इस देश का नाम, 'इक्खागभूमि', 'विनीतभूमि' ४ हुआ । कालान्तर में यही भूमि 'मध्यदेश' नाम से विख्यात हुई " |
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(१) आवश्यक चूरिण पत्र १५२ - १५३
(२) त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १ सर्ग २, श्लोक ८८१ ( ३ ) ( अ ) आवश्यक सूत्र मलयगिरि टीका १६३ - १ |
( आ ) आवश्यक निर्युक्ति हारिभद्रीय टीका पत्र १२०-२ । ( ४ ) आवश्यक सूत्र मलयगिरि टीका पत्र १५७ -२ । (५) आवश्यक निर्युक्ति हारिभद्रीय टीका श्लोक १५१ पत्र १०६ -२ ।
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