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(४६) वर्ष (जम्बूद्वीप) का क्षेत्रफल १०,००० योजन था। मध्यप्रदेश, उत्तरापथ, अपरान्तक, दक्षिणापथ और प्राच्य-ये पांच प्रदेश थे। हम यहाँ इनका संक्षेप में वर्णन करेंगे, जिससे बुद्धकालीन भारत का भौगोलिक परिचय प्राप्त हो सके ।
"मध्यम देश" ___ "...बुद्ध ने मध्यम देश में ही विचरण करके बुद्धधर्म का उपदेश किया था। तथागत पदचारिका करते हुए पश्चिम में मथुरा (अंगुत्तर निकाय ५, २, १० । इस सूत्र में मथुरा नगर के पाँच दोष दिखाये गये हैं ) और कुरु के थुल्लकोठित (मज्झिम निकाय, २, ३, ३२ । दिल्ली के आसपास का कोई तत्कालीन नगर) नगर से आगे नहीं बढ़े थे। पूरब में कजंगला निगम के मुखेलु वन (मज्झिम निकाय ३. ५. १७ । कंकजोल, संथाल परगना, बिहार)
और पूर्व-दक्षिण की सललवती नदी (वर्तमान सिलई नदी, हजारीबाग और बीरभूमि ) के तीर को नहीं पार किया था। दक्षिण में सुंसुमारगिरि ( चुनार, जिला मिर्जापुर ) आदि विध्याचल के आसपास वाले निगमों तक ही गये थे । उत्तर में हिमालय की तलहटी के सापुग ( अंगुत्तर निकाय ४. ४. ५ ४.) निगम और उसीरध्वज (हरिद्वार के पास कोई पर्वत ) पर्वत से ऊपर जाते हुए नहीं दिखायी दिये थे। विनयपिटक में मध्यदेश की सीमा इस प्रकार बतलायी गयी है-"पूर्व में कजंगला निगम.... पूर्व-दक्षिए में सललवती नदी....। दक्षिण दिशा में सेतकणिक निगम (हजारीबाग जिले में कोई स्थान)...। पश्चिम में थूण (आधुनिक थानेश्वर ) नामक ब्राह्मणों का ग्राम...। उत्तर दिशा में उसीरध्वज पर्वत...(विनयपिटक ५. ३. २.) .. मध्यम देश ३०० योजन लम्बा और २५० योजन चौड़ा था। इसका परिमंडल ९०० योजन था। यह जम्बूद्वीप (भारतवर्ष) का एक वृहद् भाग था। तत्कालीन १६ जनपदों में से १४ जनपद इसी में थे-काशी, कोशल, अंग, मगध, वज्जी, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, पंचाल, मत्स्य, शूरसेन, अश्वक और अवन्ति । शेष दो जनपद गन्धार और कम्बोज उत्तरापथ में पड़ते थे।"
ती. म. ४
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