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(४१) भगवान् पार्श्वनाथ ने चतुर्याम' धर्म का उपदेश दिया। (१) प्राणातिपात विरमण-किसी भी जीव की हिंसा न करना (२) मृषावाद विरमण --किसी प्रकार का झूठ न बोलना (३) अदत्तादान विरमण-किसी प्रकार की चोरी न करना (४) परिग्रह विरमण -आरंभ-समारंभ की वस्तुओं का त्याग
साधनावस्था के ८३ दिन निकाल कर शेष ७० वर्षों तक भगवान् ने धर्मोपदेश किया। __ ३० वर्ष गृहस्थावस्था, ८३ दिन छद्मावस्था, ८३ दिन कम ७० वर्ष केवली अवस्था-इस प्रकार कुल १०० वर्षों का आयुष्य बिताकर श्रावण सुदि ८ दिन (७७७ ई० पू.) में सम्मेतशिखर नामक पर्वत पर एक मास का अनशन करके ३३ पुरुषों के साथ भगवान् पार्श्वनाथ ने समाधिपूर्वक निर्वाण-पद प्राप्त किया।
जैन शास्त्रों में भगवान् महावीर के निर्वाण से २५० वर्ष पूर्व भगवान् पार्वनाथ का निर्वाण बतलाया गया है।
आर्य-क्षेत्र सब से पहले हमें इस प्रश्न पर विचार कर लेना चाहिए कि, 'आर्यावर्त'
पृष्ठ ४० की पादटिप्पणि का शेषांश स्पष्ट है कि शुभ, शुभदत्त, दत्त तथा आर्यदत्त वस्तुतः एक ही व्यक्ति के
नाम हैं। (१) चाउजामो य जो धम्मो, जो इमो पंच सिक्खिओ।
देसिओ वद्धमारणेणं, पासेण य महामुणी ॥ २३ ॥ - उत्तराध्ययन सूत्र, त्रयोविंशतिमध्ययनम् 'नेमिचन्द्राचार्यकृत टीका"
पत्र २६७-१ (२) वय'त्ति व्रतानि-महाव्रतानि तानि च द्वाविंशतिजिनसाधूनां चत्वारि,
यतस्ते एवं जानन्ति यत् अपरिगृहीतायाः स्त्रियः भोगाऽसंभवात् स्त्री अपि परिग्रह एवेति, परिग्रहे प्रत्याख्याते श्री प्रत्याख्यातव,. प्रथमचरमजिनसाधूनां तु तथा ज्ञानाऽभावात् पञ्च व्रतानि । -कल्पसूत्र, सुवोधिका-टीका पत्र, ५
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