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(७) पुलाकलब्धि' (८) परिहार विशुद्धिचारित्र' (8) सूक्ष्मसंपरायचारित्र (१०) यथाख्यातचारित्र' । . इस आरे में शलाकापुरुष नहीं होते। जातिस्मरण अवधिज्ञान विद्यमान होते हुए भी समय के प्रभाव से बहुत कम देखने में आते हैं। इस काल में मनुष्य । पापी, अधर्मी, रागी, धर्मद्वेषी और मर्यादारहित होते हैं और गाँव स्मशानतुल्य, नगर ग्रामतुल्य, कुटुम्बी दासतुल्य और राजा यमतुल्य होते हैं। निर्धन को बहुत बाल-बच्चे होते हैं और धनवान निष्पुत्र होते हैं । धनाढ्य को मंदाग्नि का रोग रहता है और दुर्भागी दृढ़ अग्नि वाले और दृढ़ शरीर वाले होते हैं । इसी प्रकार मूर्ख भी दृढ़ अंग वाले, निरोगी और शास्त्रज्ञ कृश शरीर वाला होता है । खल जन स्वेच्छया विलासी होते हैं । रात्रि को प्रजाजनों को चोर पीड़ा पहुँचाते हैं और दिन को राज्याधिकारी । राजा प्रायः मिथ्यादृष्टि वाले, हिंसक और शिकार आदि में रुचि लेने वाले होते हैं। विप्र असंयत और ठग होते हैं। मिथ्या विश्वास लोगों में फैल जाता है और श्रावक लोग भी उनके शिकार हो जाते हैं । उनकी उत्कृष्ट आयु १३० वर्ष और ऊँचाई ७ हाथ होती है। (१) पुलाक लब्धि-जिससे चक्रवर्ती के सैन्य को भी चूर्ण कर देने के लिए मुनि समर्थ होता है, ऐसी शक्ति को पुलाकलब्धि कहते हैं।
-कल्पसूत्र सुबोधिका टीका, पत्र४८३ (२) परिहारविशुद्धि-एक संयम विशेष
-पाइअसद्दमहण्णवो, पृष्ठ ६६६ (३) सूक्ष्मसंपराय-लोभ रूप कषाय जिस में अति सूक्ष्म रूप में शेष हो उसे सूक्ष्म संपरायचारित्र कहते हैं।
-स्थानाङ्ग सटीक ४२८, पत्र ३२४-२ (४) यथाख्यात-उपशान्ति मोह और क्षीण मोह छद्मस्थ को तथा
संयोगी अयोगी केवली को होता है सर्वथा कषाय बिना जो शुद्ध संयम
है, उसे यथाख्यात संयम कहते हैं। ... स्थानांग सटीक ४२८ (५) काललोक प्रकाश पृष्ठ ५६२ .
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