Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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खण्डा और विशाखा से मिलन और लग्न acterschedeoja cha chr such deshsessiesh siesfante skestectedestitechshedesesedessesbsecade destendestosterdashtistested
२५ -thetidasesedeshesheet
आव यकता नहीं है जिसमें अपने ही प्रियबन्धु का वियोग कारण बने । हम प्राणपण से बन्धु की रक्षा करने में तत्पर रहेंगी।"
एकबार हमारा भाई देशाटन को निकला । उसने आपके माता पुष्पचल की पुत्री पुष्पवती को देखा। उसके अद्भुत रूप-लावण्य को देख कर वह मोहित हो गया और उसने उसका हरण किया । यद्यपि पुष्पवती उसके अधिकार में थी, किन्तु उसके तेज को वह सहन नहीं कर सका। इसलिये उसे वश में करने के लिये वह साधना करने लगा और आपके हाथों मारा गया। उधर हम उसके लग्न की सामग्री ले कर आई, तो पुष्पवती ने आपके द्वारा उसके वध की बात कही। हमें गम्भीर आघात लगा। पुष्पवती ने हमें समझाया। हमने भी महात्मा की भविष्य-वाणी का स्मरण कर के भवितव्यता का परिणाम समझ कर संतोष धारण किया और आपको पति स्वीकार किया। पुष्पवती प्रसन्न हुई। उत्साह के आवेग में उसने आपको संकेत कर के बुलवाने में भूल कर दी और रक्तध्वजा के बदले स्वेत ध्वजा हिला दी । अनर्थ हो गया। आप निकट आने के बदले दूर चले गये। यह हमारे दुर्भाग्य का उदय था।हम आपको खोजने के लिये निकली और बहत भटकी. किन्त आपको नहीं पा सकी । हताश हो कर भी आशा के बल पर यहीं रह कर समय व्यतीत करती रही । हम दिनभर आते-जाते लोगों में आपको खोजती रहती । आज हमारी मनोकामना सफल हुई । पहले तो हमने पुष्पवती के कहने से मन ही-मन आपका वरण किया था । अब आज आप साक्षात् हमारे साथ लग्न कर के हमें अपनावें।"
ब्रह्मदत्त ने उन दोनों के साथ गन्धर्व विवाह किया। रातभर वहाँ सुखोपभोग करने के बाद प्रातःकाल उन दोनों पत्नियों से कहा--"मैं तो अभी जा रहा हूँ। जब तक मुझे राज्य-लाभ नहीं हो जाय तब तक तुम पुष्पवती के साथ रहना ।" ब्रह्मदत्त वहाँ से चल कर तापस के आश्रम में आया और रत्नावती की शोध करने लगा । वहाँ उसे एक सुन्दर आकृति वाला पुरुष दिखाई दिया। उससे ब्रह्मदत्त ने पूछा--"कल यहाँ एक सुन्दर युवती थी, वह कहाँ गई ?" उसने कहा--"वह युवती जब--'हे नाथ ! हे नाथ !"पुकार कर रोने लगी, तब हमारे यहाँ की स्त्रियाँ उसके पास आई और देखते ही पहिचान गई । उन्होंने उसे उसके कावा के यहाँ पहुँचा दिया । वह वहीं होगी ।" वह पुरुष ब्रह्मदत्त के साथ चल कर धनावह सेठ के घर पहुँचा आया । धनावह सेठ ने बड़े ठाठ के माथ रत्नावती का लग्न ब्रह्मदत्त के साथ कर दिया । ब्रह्मदत्त वहीं रह कर सुखोपभोग में काल व्यतीत करने लगा।
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