Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र भाग ३
२४ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका
खोज प्रारम्भ कर दी। चारों ओर दूर-दूर तक खोज की, किन्तु एक बाण के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिला । ब्रह्मदत्त हताश हो गया। रात्रि में उस ग्राम में डाकूदल
आ कर लूट मचाने लगा, किन्तु कुमार के प्रहार के आगे उसे भागना ही पड़ा। दूसरे दिन वह रत्नावती के साथ आगे बढ़ा और क्रमशः आगे बढ़ता हुआ मगधपुरी पहुँचा । रत्नावती को उद्यान के तापस आश्रम में रख कर वह नगर में गया । वह नगर के भव्य भवनों को देखता हुआ आगे बढ़ रहा था कि उसकी दृष्टि एक भवन के गवाक्ष में बैठी दो सुन्दर स्त्रियों पर पड़ी। उसी समय उन सुन्दरियों की दृष्टि भी उस पर पड़ी और तत्काल वे सुन्दरियाँ बोल उठी,--"प्राणवल्लभ ! हमें निराधार छोड़ कर कहाँ चले गये थे? हम तभी से आप के विरह में तड़प रही हैं । आपका इस प्रकार अचानक चला जाना क्या शिष्टजन के योग्य था ?"
--"देवियों ! आप कौन हैं--यह मैं नहीं जानता और कदाचित् आप भी मुझे नहीं जानतो होंगी। फिर कैसे कहा जाय कि मैने आपका त्याग कर दिया"--ब्रह्मदत्त आश्चर्ययुक्त बोला।
"हृदयेश्वर ! आप यहाँ ऊपर पधारो और अपनी प्रेमिकाओं को पहिचानो। बाजार में खड़े-खड़े बातें नहीं हो सकती।"
ब्रह्मदत्त ऊपर गया। दोनों रमणियों ने उनका हृदय से उल्लास पूर्वक स्वागत किया। स्नान-भोजन कराने के बाद सुखासन पर बैठ कर अपना परिचय देने लगी।
____ "वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी के शिवमन्दिर नगर के नरेश ज्वलनशिखजी हमारे पिता हैं । नाट्योन्मत्त हमारा भाई है । एक बार हमारे पिता अपने मित्र अग्निशिख के साथ बैठे बातें कर रहे थे कि आकाश में जाते हुए देवों को देखा। वे मुनिश्वरों को वन्दन करने जा रहे थे । हमारे पिता और उनके मित्र ने भी महात्माओं को वन्दन करने के लिए जाने का निश्चय किया। विद्याधरों के लिये कहीं भी जाना सहज है। वायुयान से चले। हम भी उनके साथ थीं । महात्माओं के दर्शन किये । वैराग्यमयी धर्मदेशना सुनी । इसके बाद अग्निशिखजी ने पूछा--"महात्मन् ! इन दोनों बहिनों का पति कौन होगा?" महात्मा ने उपयोग लगा कर कहा-- 'जो वीर पुरुष इनके बन्धु का वध करेगा, वही इनका पति होगा।" महात्मा की बात सुन कर पिताश्री चिन्तित हो गए । हमें भी बड़ा खेद हुआ। हमने वैराग्यमय वचनों से कहा--"पूज्य ! आपने अभी महात्माजी की पवित्र वाणी से संसार की असारता सुनी है । फिर खेद क्यों करते हैं ? और हमें भी ऐसे विषय-सुख की
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