Book Title: Tattvartha Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिका-नियुक्ति टोका अ.६ २.५ सागरायिककर्मास्त्रवभेदनिरूपणम् ३९ परस्परव्यतिकीर्णाऽन्यतिकीर्णरूपा एकात्रवत्वं प्रतिपद्यन्ते । ताः खलु क्रियाःकायिकी १ आधिकरणिकी २ माद्वेषिकी ३ पारितापनिकी ४ माणातिपातिकी ५ अपत्याख्यानिकी ६ आरम्भिकी ७ पारिवाहिकी८ मायापत्ययिकी ९ मिथ्या. दर्शनमत्ययिकी १० दार्शनिकी ११ स्पर्शिकी १२ मातीतिकी १३ सामन्तोपनि. पातिकी १४ स्वास्तिकी १५ नेसृष्टिकी १६ आज्ञापनिकी १७ पैदारणिकी १८ अनाभोगमत्ययिकी १९ अनवकाइक्षा पत्ययिकी २० प्रेम प्रत्ययिकी २१ देषप्रत्ययिकी २२ प्रायोगिकी२३ सामुदानिकी २४ ऐयापयिकी २५ इमाः पञ्चविंशतिः क्रियाः सकषायस्य कसुरात्मनः साम्परायिकस्य कर्मण आस्त्रमा भवन्ति । तत्र कायिकी क्रियाऽनुपरत कायक्रिया१ दुष्पयुक्तकायक्रिया चेतिद्विधा । तत्राऽनुपरतस्य सावधानुष्ठानादनिवृत्तस्य मिथ्यादृष्टेः सम्यग्दृष्टेवा या कायक्रिया-उत्पेक्रियाएं भी आस्रव हैं। वे क्रियाएं इन्द्रिय, कषाय एवं अब्रतों से युक्त होती हैं। क्रियाएं पच्चीस हैं-(१) कायिकी (२) आधिकरणिकी (३) प्रादेषिकी (४) पारितापनिकी (५) प्राणातिपातिकी (६) अप्रत्याख्यानिकी (७) आरम्भिकी (८) परिग्राहिकी (९) मायाप्रत्यया (९) मिथ्यादर्शन प्रत्यायिकी (११) दार्शनिकी (१२) स्पर्शनिकी (१३) प्रातीतिकी (१४) सामन्तोपनिपातिकी (१५) स्वाहस्तिकी (१६) नैसृष्टिकी (१७) आज्ञापति की (१८) वैदारणिकी (१९) अनामोग प्रत्ययिकी (२० अनवकांक्षा प्रत्ययिकी (२२) द्वेष प्रत्यायिकी (२३ प्रायोगिकी (२४) सामुदानिकी और (२५) ऐपिथिकी। यह पच्चीस क्रियाएं सकषाय आत्मा के लिए साम्परायिक आस्रव का कारण होती हैं । इन में से (१) कायिकी क्रिया दो प्रकार की है-अनुपरतकाय क्रिया और दुष्प्रयुक्तकाय क्रिया। जो सावध તે ક્રિયાઓ ઈન્દ્રિય, કષાય તથા અવતેથી યુકત હોય છે. ક્રિયાઓ પચ્ચીસ छ-(१) यिही (२) आधि४२४ी (3) प्राबिधी (४) पारितापनिती (4) प्रातिपाति (6) अप्रत्याभ्यानिशी (७) मा२मि (८) पारियलिटी (6) માયાપ્રત્યયા (૧૦) મિથ્યાદર્શનપ્રયિકી (૧૧) દાર્શનિકી (૧૨) સ્પેશિકી (13) प्रातली (१४) साम-तापनिपातिी (१५) स्वास्तिकी (१६) नैसष्टिता (१७) माज्ञापतिकी (१८) वैवाणुिकी (16) मनालाप्रत्ययी (२०) मनasian अत्ययिकी (२१) प्रेमप्रत्यय: (२२) द्वेषप्रत्यायी (२३) प्रायली (૨૪) સામુદાનિકી અને (૨૫) અર્યાપથિકી. આ પચ્ચીસ ક્રિયાઓ સકષાય આત્માના માટે સામ્પરાયિક આસવનું કારણ હોય છે. આમાંથી (૧) કાયિકી ક્રિયા બે પ્રકારની છે-અનુપરતકાય ક્રિયા અને દુષ્પત્યુતકાય કિયા જે સાવધ
श्री तत्वार्थ सूत्र : २