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षड्दर्शन समुश्यय भाग-२, श्लोक-४५-४६, जैनदर्शन
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यदि कोई विशेष प्रकार के कार्यत्व हेतु से ईश्वर की जगत्कर्ता के रुप में सिद्धि होती है। ऐसा कहोंगे तो विशेषकार्यत्वहेतु असिद्ध है। क्योंकि जगत के सभी कार्य प्रायः समान ही देखने को मिलते है। जिस तरह से घट-पटादि कार्य है, वैसे ही पृथ्वी आदि कार्य है।
यदि पृथ्वी आदि विशेषकार्य मानोंगे तो अर्थात् पृथ्वी आदि में कोई विशेषता मानोंगे तो जिन लोगो ने पृथ्वीआदि को बनता हुआ नहि देखा है, उनको भी कृतबुद्धि = ईश्वर ने ये पृथ्वी आदि बनाये है, ऐसी बुद्धि होनी चाहिए। क्योंकि जैसे कलात्मक जीर्ण कुओ इत्यादि तथा राजमहल को देखकर इसका कर्ता बहोत कुशल लगता है, ऐसी बुद्धि होती है। वैसे पृथ्वी आदि को देखकर भी इसके कर्ता सर्वज्ञ ईश्वर है, ऐसी बुद्धि होनी चाहिए। परन्तु पृथ्वी आदि में ऐसी कृतबुद्धि नहीं होती है। इसलिए पृथ्वी आदि के कर्ता के रुप में ईश्वर की सिद्धि नहीं होती है।
ईश्वरवादि( पूर्वपक्ष): पृथ्वी आदि बनती दिखाई नहीं दी। इसलिए पृथ्वी आदि में कृतबुद्धि नहीं होती है। उसके साथ साथ कोई समारोप (मिथ्यावासनायें) भी पृथ्वी आदि में कृतबुद्धि नहीं होने देती है।
जैन (उत्तरपक्ष): उभयत्र यह सामान्य है। क्योंकि दोनो स्थान पे कर्ता अतीन्द्रिय ही है। कहने का मतलब यह है कि पुराने कलात्मक कुओ तथा राजमहलो को किसीने बनता हुआ नहि देखा, फिर भी कृतबुद्धि होती है। वैसे पृथ्वी आदि भी बनते हुए नहीं देखे, फिर क्यों कृतबुद्धि होती नहीं है? दोनो के कर्ता इस समय तो अतीन्द्रिय ही है। अर्थात् अतीन्द्रियकर्ता इन दोनो में सामान्य है। अर्थात् दोनो के कर्ता इन्द्रिय के विषय बने ही नहि है। वैसे ही मिथ्यावासना का तो निर्णय हो सकता नहिं है कि.... "हम लोगो को मिथ्यावासना के योग से पृथ्वी इत्यादि में कृतबुद्धि होती नहीं है और आप लोगो को मिथ्यावासना के योग से ही पृथ्वी इत्यादि में कृतबुद्धि होती है !"
ईश्वरवादि ( पूर्वपक्ष): प्रामाणिक लोगो को तो पृथ्वी इत्यादि में "यह ईश्वर ने बनाये है" - ऐसी कृतबुद्धि होती ही है। आपको न हो उसमें हम क्या करे ?
जैन ( उत्तरपक्ष): कौन प्रामाणिक और कौन अप्रामाणिक यह बात एक तरफ रखे। आप कहो कि "पृथ्वी आदि ईश्वरकृत है" - ऐसा किस प्रमाण से जानना? वह (उपरोक्त) अनुमान से या दूसरे कोई अनुमान से? ___ यदि (उपरोक्त) अनुमान से अर्थात् कार्यत्व हेतु से होनेवाले अनुमान द्वारा पृथ्वी इत्यादि को ईश्वरकृत मानोंगे तो अन्योन्याश्रय दोष आयेगा। जैसेकि.... जब कार्यत्वहेतु का कृतबुद्ध्युत्पादकत्वरुप विशेषण सिद्ध हो जाये, तब वह सिद्धविशेषणहेतु से प्रकृत अनुमान हो जाये तथा जब प्रकृत अनुमान हो जाये, तब उस अनुमान से कार्यत्व हेतु की कृतबुद्ध्युत्पादकत्वरुप विशेषण की सिद्धि हो जाये इस प्रकार अन्योन्याश्रय दोष आता होने से प्रथमपक्ष योग्य नही है।
द्वितीयपक्ष में यदि अनुमानान्तर से कृतबुद्धि उत्पाकत्व विशेषण की सिद्धि मानी जाये तो वह अनुमानान्तरका उत्थान भी सविशेषणहेतु से ही मानना चाहिए। अब इस अनुमानान्तर के हेतु के विशेषत्व
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