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२२-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
कता का व्यवहार नही करना चाहिए । इस प्रकार अपने कर्तव्य मे प्रामाणिकता रखना परमात्मा का नाम लिये बिना ही परमात्मा के स्मरण करने का और सुखी होने का सरल उपाय है। अगर परमात्मा के भजन के लिए तुम्हे अलग समय नहीं मिलता तो इसी भाति परमामा का स्मरण करो। कोई भी कार्य करते समय यही समझना चाहिए कि परमात्मा हमारा कार्य देख रहा है । इस प्रकार समझ कर प्रामाणिकतापूर्वक कार्य करना भी परमात्मा का स्मरण हो है। मगर लोग प्राय ऐना करते देखे जाते हैं कि ऊपर से तो परमात्मा का नाम स्मरण करते है, मगर कार्य करते समय मानो परमात्मा को भूल हो जाते है । लेकिन यह सच्चा नामस्मरण नही है । अगर परमात्मा को दृष्टि के सामने रखकर प्रामाणिकता के साथ कर्तव्य का पालन किया जाये तो स्व-पर कल्याण हो सकता है।
अनुप्रेक्षा का अन्तिम फल क्या है, यह बतलाते हुए भगवान् कहते है - अनुप्रेक्षा करने से जीवात्मा अनादि, अनत, दोघ्र मार्ग वाले अपार चतुर्गतिरूप ससार-अरण्य को शीघ्र ही पार कर जाता है ।
जिसका किनारा दिखलाई देता हो उसे पार करना कठिन नही है, किन्तु जो अपार है, जिसका किनारा नजर नही आता, उसे पार करना बहुत कठिन है। अब इस बात पर विचार करो कि जो वस्तु अपार के पार पहुचा देती है, वह कैसी होगी ? यहा ससार को प्रवाह की अपेक्षा अपार कहा गया है । यह अपार ससार अनादि है । देव, मनुष्य, तियंच और नरक यह चार गतिया 'इस अपार ससार के