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५८-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
शब्द सुनने को मिलते ? और उस अवस्था मे कोई मुझे यह शब्द कहता? कदाचित् कोई कहता भी तो मैं उन्हे समझ ही न सकता । अब जब मुझे समझने योग्य इन्द्रियाँ प्राप्त हुई हैं तो इस प्रकार के शब्द सुनकर मेरा क्या कर्तव्य होता है ? वह मुझे लम्पट और ठग कहता है। मुझे सोचना चाहिए कि क्या मुझमे ये दुर्गुण है ? अगर मुझमे यह दुर्गुण है तो मुझे दूर कर देना चाहिए । वह बेचारा गलत नही कह रहा है । विचार करने पर उक्त दुर्गुण अपने मे दिखाई न दे तो सोचना चाहिए हे आत्मा | क्या तू इतना कायर है कि इस प्रकार के कठोर शब्दो को भी नही सहन कर सकता ? कठोर शब्द सुनने जितनी भी सहिष्णुता तुझमे नही है । यह कायरता तुझे शोभा नहीं देती । जो व्यक्ति अपशब्द कहता है उसे भी चतुर समझ। वह भी अपशब्दो को खराब मानता है । इस प्रकार तेरा और उसका ध्येय एक है । इस प्रकार विचार करके अपशब्द सुनकर भा जो स्थिर रहता है, उसी ने श्रोत्रेन्द्रिय पर विजय प्राप्त को है।
इसी प्रकार सुन्दरी स्त्री का रूप देखकर ज्ञानीजन विचार करते है इस स्त्री को पूर्वकृत पुण्य के उदय से ही यह सुन्दर रूप मिला है । अपने सुन्दर रूप द्वारा यह स्त्री मुझे शिक्षा दे रही है कि अगर तू पुण्य का सचय करेगा तो सुन्दरता प्रदान करने वाले पुद्गल तेरे दास बन जाएगे।
किसी सुन्दर महल को देखकर भी यह सोचना चाहिए कि यह महल पुण्य के प्रताप से ही बना है। मेरे लिए यही उचित है कि मैं इस महल की ओर दृष्टि ही न डालूं । फिर भी उस पर अगर मेरी नजर जा ही पड़ती है तो मुझे