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११६ - सम्यक्त्वपराक्रम ( ३ )
तुम जिन चीजो का सदैव व्यवहार करते हो श्रीर जिनके लिए तुम्हे अभिमान है, उनमे से कोई चीज ऐसी है जिसे तुम वना सकने हो ? अगर वना नही सकते तो यह तुम्हारी पराधीनता है या स्वाधीनता ? इस पर विचार करो । सिद्धान्त मे कहा है- राजकुमार हो या श्रेष्ठिकुमार हो, प्रत्येक कुमार को ७२ कला सीखना आवश्यक है । ७२ कलाओ में जीवन सम्वन्धी सभी ग्रावश्यकताओ को पूर्ण करने वाली वस्तुए बनाने को और उनका उपयोग करने की कला का समावेश हो जाता है । इन ७२ कलाओ को सीख लेने से जीवन पराधीन नही रहता स्वाधीन वन जाता है । यह आश्चर्य और दुख का विषय है कि आज लोग पराधीन होते हुए भी अभिमान करते है । जीवन को स्वतंत्र बनाने के लिए कलाओ का ज्ञान सम्पादन करना आवश्यक है ।
श्री ज्ञातासूत्र मे, मेघकुमार के अध्ययन मे ७२ कलाओ का वर्णन किया गया है। उनमे एक कला अन्नविधि सबन्धी है । इस अन्नविधिकला में, अन्न किस प्रकार उत्पन्न करना, किस प्रकार सुरक्षित रखना और किस प्रकार पका कर खाना आदि का शिक्षण आ जाता है । अर्थात् कृषिकर्म के साथ ही कृषि द्वारा उत्पन्न हुई वस्तु की रक्षा और उसके उपयोग की विधि भी मालूम हो जाती है । शास्त्र मे इस कला के भी तीन भेद किये गये हैं । सर्वप्रथम कला को सूत्र से जानना चाहिए, फिर जानी हुई कला को अर्थ से समझना चाहिए और अन्त मे जानी तथा समझी हुई कला को ग्रमल मे लाना चाहिए ।
अगर कोई मनुष्य किसी कला को सूत्र से तो जानता है परन्तु अर्थ से नही समझता और कर्म से व्यवहार में