________________
{
तेतीसवां बोल१६७ ।
गुलाम नही है ।' नवाब ने कहा- 'तो फिर बादशाह बडे क्यो कहलाते हैं ?' लॉर्ड ने कहा- हमारे बादशाह के पास यो तो गुलाम बहुत हैं। पर वे शरीर से नहीं, मन से हैं । जो शरीर से ही गुलाम होता है और मन से गुलाम नहीं होता अर्थात् जो मन से स्वतन्त्र है वह गुलाम नही है। वास्तव में गुलाम वही है जो मन से गुलाम है। ।। ६ आशय यह है कि द्रौपदी के कथनानुसार जो स्वावलम्बी बनता है वही सभोग का त्याग कर सकता है । सभोग का त्यागे करने के लिए अपने बल-अबल का विचार पहले, करना आवश्यक है । शास्त्र कहता है कि अगर आज तुममें सभोग का त्याग करने की शक्ति नहीं है तो सभोग का त्याग करने वाले जिनकल्पी महात्माओ का आदर्श दृष्टि के सामने रखो और उनके समान बनने का प्रयत्न करो। इसी मे 'कल्याण है । । । - यह तो बतलाया जा चुका है कि सभोग का त्याग करने से निरवलम्ब अवस्था प्राप्त होती है । सभोग पारस्परिक लाभ के लिए किया जाता है फिर भी उसमे परतत्रता तो है ही । अतएव साहस और शक्ति हो तो इस परतन्त्रता को दूर करने के लिए सभोग का त्याग करना आवश्यक है । जहाँ लाभ होता है वहाँ परतन्त्रता भी होती है । अंत. स्वाधीन बनने के लिए उस लाभ से वचित रहना
और संभोग का भी त्याग करना आवश्यक है । . सभोग मे रहने से दूसरो का पालम्बन लेना पड़ता है। अगर सभोग का त्याग कर दिया जाये तो निरालम्ब बन सकते हैं । सभोग का त्याग करना शक्ति और साहस