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२२०-सम्यक्त्वपराक्रम (३) मे अन्तर है !
इस प्रकार म्ह लेश्याओ में तीन पापकारिणी और तीन धर्मकारिणी है। इसका कारण यही है कि तीन लेश्याएं पाप का पक्ष लेने वाली हैं और तीन धर्म का पक्ष लेने वाली हैं । जिस व्यक्ति मे वर्म होगा और जो धर्म का पक्ष लेता होगा, कह तो हिमा से बचने का ही प्रयत्न करेगा।
कहने का आशय यह है कि संमार में हिंसा और हिमा दोनों के स्वतन्त्र पक्ष हैं । परन्तु तुम्हे तो अहिंसा का पक्ष लेना चाहिए और हिंसा से बचना चाहिए । तुम्हारे लिए स्थूल हिंसा त्याज्य है। स्थल हिंसा के भी दो भेद किये गये हैं एक सकल्पी हिमा और दूसरी आरम्भी हिंसा है । भारम्भ की हिमा का गृहस्थ त्याग नही कर सकता, अतः उसकी गृहस्थ के लिए छूट है । खेती करने में अगर कोई कीडा आदि मर जाये तो उससे तुम्हे कोई पापी नही कह सकता, अगर जान-बूझकर तुम कीडो को मारोगे तो अवश्य पापी कहलाओगे, क्योंकि वह हिंसा सकल्प की हिंसा है । सकल्पी हिंसा भी दो प्रकार की है-अपराधी की हिंसा और निरपराध की हिंसा । इनमे से निरपराध जीव का मारना तुम्हारे लिए वर्ण्य है । थावको को अपराधी को मारने का त्याग नहीं होता । किन्तु निरपराध जीव को मारने का त्याग श्रावक को करना ही चाहिए । निरपराधी जीव को मकल्प करके मारने से व्यवहार में भी तुम पापी कहलाओगे । इस प्रकार तुम्हारे लिए चलते-फिरते जीव को ( जो व्यवहार में भी जीव माने जाते हैं) सकल्पपूर्वक मारने का त्याग करना आवश्यक है। स्थूल हिंसा से बचना भातक का पहला अहिमावत है ।