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२३८-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
भी आत्मकल्याण न करना तुम्हारी कितनी बडी भूल है ? पनिहारी पानी भरते समय अपनी सखियो से बातें भी करती जाती है और घडा गिर न जाय, इस बात का ध्यान भी रखती है । जैसे पनिहारी का चित्त घडे की ओर वरावर लगा रहता है, उसी प्रकार दूसरे काम करते हुए भी तुम अपने चित्त को. परमात्मा मे पिरोदो तो कितना अच्छा हो ? परमात्मा में चित्त एकाग्र करने से आत्मा का हित भी होता है और चित्त स्वच्छ भी रहता है। मन ही बध और मोक्ष का कारण है, अतएव मन जितना पवित्र रहेगा, उतना ही कल्याण होगा। मन को स्वच्छ या पवित्र रखने का सब से अच्छा साधन परमात्मा का नाम स्मरण करना है। तुम्हारे शरीर को राजा कदाचित वन्धन मे डाल सकता है परन्तु मन को राजा तो क्या, कोई महान् शक्तिशाली व्यक्ति भी बन्धन मे नही बाँध सकता । मन तो स्वतन्त्र ही है । अतएव जेल मे भी अगर मन से परमात्मा का स्मरण किया जाये तो जेल भी कल्याण का धाम वन सकता है!
श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में ही हआ था। वसुदेव और देवको जव कारागार मे वन्द थे तब कृष्ण का जन्म हुआ । फिर भी वे क्या जेल मे दुःख मानते थे ? अगर उन्होने कारागर को कष्टागार माना होता तो क्या वे श्रीकृष्ण का आनन्द लूट सकते थे?
एक पुग्तक मे मैंने पढा है कि देवी जैसी सहनशील स्त्री दूसरी नही हुई। देवकी में स्त्री उचित अन्यान्य सद्गुण तो थे ही, परन्तु पति के वचन की रक्षा के लिए अपनी