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२४६-सम्बक्त्वपराक्रम (३)
गटर का पानी गन्दा और खराब होता हैं और गगा। का पानी निमाल तथा अच्छा होता है, । सुना है, काशी नगरी की सब गटरें बहुत गन्दो हैं और उन सब का गन्दा पानी गगा नदी में जाता है । गगा का पानी पवित्रा और गटर का अपवित्र माना जाता है अतएवा अगर गगा अपने पानो मे गटर का पानी न आने दे तो क्या तुम गगा को गगा कहोगे ? गटर गन्दी होती है फिर भी गगा उसे अपने मे मिला लेती है और गटर को भी गगा रूप बना लेती है । जो अपनी अपवित्रता दूर करके पवित्र, बनना चाहता है, गगा उसे अपने ही समान पवित्र बना लेती है।
जव गगा भी उपाधि का त्याग करके आयो हए गटर के पानी को अपने साथ मिला कर पवित्र बना देती है तो क्या परम पवित्र परमात्मा उपाधि का त्याग करके आये हुए प्राणियो को पवित्र नहीं बनाएगा ? परमात्मा तो प्रत्येक प्राणी को-चाहे वह छोटा हो या बडा, उच्च हो या नीच हो- पवित्र बनाता है। उपाधि का त्याग करके आत्मा अगर परमात्मा के शरण मे जाये तो आत्मा परमात्मा बन जाता है । शास्त्रकार भी यही उपदेश देते हैं कि उपाधि का त्याग करो और विपत्ति को भी सम्पत्ति समझ कर आत्मोद्धार करो । आत्मोद्धार करने मे ही कल्याण है। जो व्यक्ति आत्मकल्याण करके पर का कल्याण करता है वही व्यक्ति पूजनीय माना जाता है ।
लोग शकर को मानते हैं । पर किस कारण ? इसी कारण कि शकर जगत् का कल्याण करने वाले माने गये हैं। 'शकर' की व्याख्या करते कहा गया है--'श-करोतीति