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२४८ - सम्यक्त्वपराक्रम (३)
महादेव को व्यसनपूर्ति का साधन बना लेते हैं, जब कि भक्त लोग उन्हे भक्ति का भगवान् मानते है की रक्षा के अर्थ विषपान करने वाले के व्यसनपूर्ति के साधन किस प्रकार हो सकते है ? शकर को तो जगत् का कल्याण करने वाले लोग ही प्यारे लगेंगे । महादेव ने विषपान करके विपत्ति को भी संपत्ति के रूप मे ग्रहण किया था और जगत् की रक्षा की थी । शकर बनने का यही मार्ग है । इस मार्ग का अनुसरण करके महापुरुष महत्ता और प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं । जो मनुष्य जगत्कल्याण के लिए स्वय कष्ट सहन करता है और विपत्ति को भी सम्पत्ति मानता है, वही मनुष्य महादेव या परमात्मा का भक्त है ।
। वास्तव मे जगत् शकर व्यसनी लोगो
शास्त्र कहता है उपधि या उपाधि का त्याग करने से आत्मा सक्लेशहीन बनता है । शास्त्र की इस बात पर साधुओ को तो ध्यान देना ही चाहिए, मगर श्रावको के लिए भी यह बात समान रूप से लागू पडती है । शास्त्रकारो
साधुओ के लिए सोने चाँदी की चीजो का त्याग करके केवल काष्ठ, तूम्बा या मिट्टी के पात्र रखने की आज्ञा दी है । तो फिर काष्ठ के पात्रों पर ममता रखने की या उन्हे गृहस्थो के घर ताले में बन्द रखने की इच्छा कितनी अनुचित है । अतएव साधुओ के लिए तो उपधि का त्याग करना ही श्रेयस्कर है ।
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्ति के अनुसार उपधि का त्याग करना आवश्यक है । राम या भगवान् महावीर की प्रणता उपधि का त्याग करने के कारण ही की जाती है ।