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पौतीसवाँ बोल - २४७
शकरः । ' अर्थात् जो जगत के दुख दूर करके जगत्कल्याण करता है, वही शकर है । कहा जाता है कि समुद्र मथन करते-करते अन्य चीजो के साथ हलाहल विष भी निकला था। दूसरी चीजें तो दूसरे लोग ले गये पर हलाहल विष को कौन ले ? इस विष को लेने के लिए कोई तैयार नही था । तब विष्णु ने शकर से कहा - आप देवाधिदेव है, अतएव जगत् की रक्षा के लिए विषपान करके कृतार्थ कीजिए । शकर भोले थे । जिसमे भोलापन होता है वही जगत् की रक्षा के लिए तैयार होता है । राम भी भोले थे, इसी कारण वे राज्य का त्याग करके बम मे गये थे । ऐसे भोले ही परमात्मा के सन्निकट पहुचते है । महादेव भोले थे, अतएव उन्होने 'विषपान कर लिया ।
महादेव ने तो जगत् की रक्षा के लिए विषपान किया था, परन्तु आज लोग महादेव के नाम पर गाजा- भांग आदि नशैली और विषैली वस्तुओं का उपयोग करते हैं । जब मैंने सयमधर्म स्वीकार नही किया था, बैराग्य अवस्था मे ही था, तव एक बार मुझे पास के गाव मे जाना पडा । मेरे पास एक आदमी था । उसने मुझसे पैसे मागे । मैंने उससे पूछापैसे किसलिए चाहिए ? उसने उत्तर दिया- मुझे दारू पीना है और इसीलिए पैसो की आवश्यकता है । मैं विरक्त अवस्था मे था । मैंने उससे कहा- दारू पीने के लिए मैं पैसे नही दे सकता | तब वह कहने लगा- दारू पीने मे हर्ज क्या है ? दारू तो महादेव ने बनाई है ।
इस प्रकार दारु आदि नशैली वस्तुओ का उपयोग करने में महादेव कारण बतलाये जाते हैं । व्यसनी लोग