Book Title: Samyaktva Parakram 03
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 247
________________ चौतीसवां बोल - २३६ - सतान को सौंप देना और फिर समता रखना उसका बडा भारी गुण था । सतान सभी को प्रिय होती है । पशु पक्षी भी अपनी सतान पर प्रेम रखते हैं तो फिर मनुष्य का तो कहना ही क्या है ? विशेषत स्त्रियो मे पुरुषो की अपेक्षा भी सतान के प्रति अधिक स्नेह पाया जाता है । परन्तु देवकी ने अपने पति के वचन की रक्षा के लिए ही अपनी प्राणप्रिय सतानो को मार डालने के लिए सौप दिया । देवकी जब पुत्र को जन्म देती तो वसुदेव उससे कहते - मैं अत्यन्त पापी हू । मैंने जन्म होते ही सतान सौंप देने का वचन दे दिया है । मगर तुम तो स्वय स्वतन्त्र हो जो उचित समझो वह कर सकती हो।' इस प्रकार वसुदेव ऐसे अवसर पर काँप उठते थे । देवकी के ऊपर ऐसे मौके पर दो उत्तरदायित्व आ पडते थे । एक तो पतिव्रत धर्म की रक्षा करने के लिए पति के वचन का पालन करना और दूसरे उस सतान की रक्षा करना जिसे उसने अभी जन्म दिया है । इन दोनो उत्तरदायित्व परस्पर विरोधी थे और दोनो मे से किसी एक का ही निर्वाह हो सकता था । देवकी ने अपने पति के वचन की रक्षा को ही अधिक महत्व दिया | देवकी मन में यह विचार करती - मेरे पति काम, क्रोध, लोभ आदि के वश होकर कोई अनुचित काम करते होते तो मैं उस काम का विरोध करती और पति को सन्मार्ग पर लाने का प्रयत्न करती । परन्तु मेरे पति तो धर्म का पालन कर रहे हैं और धर्म की रक्षा के लिए अपनी सतान का भी उत्सर्ग कर रहे है । ऐसी स्थिति में उनके कार्य को मैं कैसे अनुचित कहू ? कैसे बाधा डालूं ? इस प्रकार विचार करके मैं उनके कार्य मे देवकी बालक का

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