Book Title: Samyaktva Parakram 03
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 248
________________ २४० - सम्यक्त्वपराक्रम (३) जन्म होते ही वसुदेव को सौंप देती और कहती - यह बालक तो तुम्हारा ही है । मैं तो इसे पालन करने वाली दासी हूं । इसलिए तुम्हे जो उचित प्रतीत हो वही करो । वसुदेव भी क्षत्रिय और वीर पुरुष थे । वह भी अपने वचन का पालन करने के लिए दृढप्रतिज्ञ थे । आज तुम लोगो ने कायरता के कपड़े पहन लिए हैं श्रौर इसी कारण तुम धार्मिक कार्यों मे भी कायरता दिखलाते हो और जो वचन देते हो उसका वराबर पालन नही करते । मगर दिये हुए वचन का प्राणों का उत्सर्ग करके भी अवश्य पालन करना चाहिए । कहा भी है : सत मत छोड़ो शूरमा, सत छोड़े पत जाय । सत को बांधी लक्ष्मी, फेर मिलेगी श्राय ॥ दृढ प्रतिज्ञ मनुष्य कदापि वचनभग नही करता । वचन भग करने से प्रतीति- विश्वास कम हो जाता है । अतएव वचन का पालन करके प्रत्येक का विश्वास - सम्पादन करने का प्रयत्न करना चाहिए । विवाह के समय तुमने अपनी पत्नी को और तुम्हारी पत्नी ने तुमको क्या वचन दिया था ? तुमने आपस मे कैसी प्रतिज्ञा ली थी ? इस वात का जरा विचार करो । पत्नी ने उस समय पतिव्रत का पालन करने की प्रतिज्ञा ली थी और पति ने पत्नीव्रत के पालन की । तुम विवाह के समय ऐसी प्रतिज्ञा तो लेते हो पर उसका वरावर पालन करते हो ? पत्नीव्रत का पालन करने की प्रतिज्ञा लेने वाला पति अगर परस्त्री का सेवन करता है तो वह अपनी प्रतिज्ञा से भ्रष्ट होता है या नहीं ? ज्ञाती के सामने ग्रहण की हुई

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