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२१८-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
वृक्ष को मूल से ही काट गिराया जाये तो सरलता से आम ले सकेगे । इस प्रकार पहले मनुष्य ने केवल आमो के लिए सारे वृक्ष को ही काट डालने का विचार किया । शास्त्र कहता है, इस प्रकार विचार करने वाला मनुष्य कृष्णलेश्या वाला है। क्योकि वह थोडे से लाभ के लिए महान् 'अनर्थ करने को तैयार हुआ है। वृक्ष काट डालने से केवल उन्हे ही थोडे से फल मिल जाएगे, परन्तु वक्ष अगर कायम रहा तो न जाने कितने लोगो को आम मिलेंगे। ऐसा होने पर भी वह मनुष्य स्वार्थ मे अधा होकर महान् अनर्थ करने पर उतारू हो गया है । वह कृष्णलेश्या वाला है ।
दूसरे मनुष्य ने पहले से कहा--'भाई । सारा पेड काटने से क्या लाभ | अगर वृक्ष की शाखाओ को काट लिया जाये तो फल भी मिल जाएगे और वृक्ष भी कायम रह सकेगा।' इस दूसरे मनुष्य की लेश्या भी थोडे लाभ के लिए विशेष हानि करने की है, फिर भी पहले मनुष्य की अपेक्षा अच्छी है । अतएव दूसरा मनुष्य नीललेश्या वाला कहलाता है ।
तीसरे मनुष्य ने कहा 'भाई | आम तने मे तो लगे नही । आम तो छोटी-छोटी डालियो मे लगते हैं, फिर वृक्ष की शाखा काटने से क्या लाभ है ? छोटी डालियां काट लेना ही अच्छा है, इससे हमे आम भी मिल जाएगे और वृक्ष भी बचा रहेगा ।' इस तीसरे मनुष्य के विचार के अनुसार कार्य होने मे हानि अधिक और लाभ थोडा है, अतएव इसकी लेश्या कापोती होने के कारण पापकारिणी तो है ही, फिर भी पहले और दूसरे मनुष्य की लेश्या की