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२१६-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
मैंने उन डाक्टर साहब से कहा-'कीडे दो प्रकार के होते हैं -आरोग्य रक्षक और आरोग्यभक्षक । आरोग्यनाशक कीडो के कारण ही रोग उत्पन्न होता है । तुम लोग यह मानते हो कि हम दवा द्वारा आरोग्यनाशक कीडो को ही मारते हैं, मगर इसी मान्यता मे भूल है । वास्तव में तुम आरोग्यरक्षक कीडो को सशक्त बनाते हो । ऐसा करने से आरोग्यनाशक कीडे अशक्त होकर स्वतः मर लाते हैं । तुम आरोग्यनाशक कीडो को मार डालते हो, यह तुम्हारा खयाल गलत है । तुम ऐसा क्यो नही मानते कि दवा द्वारा तुम आरोग्यरक्षक कीटाणुओ को सशक्त बनाते हो ? इस दृष्टि से विचार करने पर तुम्हारा लक्ष्य कीडो को मारना नही वरन् सशक्त बनाना सिद्ध होता है । यही दृष्टि लक्ष्य मे रखोगे तो हिंसा करने के बदले रक्षा करने का तुम्हारा लक्ष्य रहेगा । उदाहरणार्थ जव दीपक जलाया जाता है तो अधकार स्वतः नष्ट हो जाता है । परन्तु यह नही कहा जाता कि अधकार नष्ट हुआ, वरन् यही कहा जाता है कि दीपक उजल गया है। इसी प्रकार अगर दवा द्वारा कोटाणुओ को सशक्त बनाना कहा जाये और ऐसा ही माना जाये तो हिंसा के समर्थन के बदले अहिंसा का समर्थन होता है।
__ ससार मे कुछ लोग अधकार का समर्थन करने वाले निकल आएंगे और कुछ प्रकाश का समर्थन करने वाले निकलेंगे, परन्तु प्रकाश का समर्थन करने वाले शुक्लपक्षीय कहलाएंगे और अधकार का समर्थन करने वाले कृष्णपक्षीय कहलाएंगे । प्रकाश तो शुक्लपक्ष मे भी रहता है और कृष्णपक्ष मे भी रहता है, फिर भी एक को शुक्लपक्ष और दूसरे को कृष्णपक्ष क्यो कहते हैं ? इसका कारण यही है कि एक