Book Title: Samyaktva Parakram 03
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 241
________________ चौतीसवां बोल - २३३ का त्याग करने के लिए कहा जाता है और दूसरी ओरउपधि से सयम की पुष्टि होना बतलाया जाता है । इसका क्या कारण है ? इसका समाधान यह है कि उपधि बधन - रूप होने से त्याज्य है और दूसरी सयम में सहायक होने के कारण, विवश होकर रखनी पडती है । इसी कारण वह ग्राह्य है । यह बात एक साधारण उदाहरण द्वारा विशेष स्पष्ट की जाती है । कल्पना करो, किसी मनुष्य के पैर मे फोडा हो गया है । डाक्टर ने मलहम लगा कर पट्टी बाधने के लिए कहा । डाक्टर के कथनानुसार उसने मलहम लगाया और पट्टी बाध ली । अब यहा विचारणीय यह है कि उसने कपडे की पट्टी ममता के कारण बाघी है या दुख दूर करने के लिए बाघी है ? आखिर वह पट्टी को छोड़ ही देने वाला है । मगर जब तक उसके पैर में फोडा है, तब तक उसे पट्टी बाघनी पड़ेगी । पैर मे फोडा न होता तो वह पट्टी क्यो बाघता ? पैर मे पट्टी बाधने की इच्छा तो उसकी है नहीं, फिर भी फोडे की पीडा जब तक बनी है तब तक विवश होकर उसे पट्टी बाघनी पड़ती है । यही बात साधुओ की उपधि के विषय में समझना चाहिए । साधु सयम का पालन करने के लिए ही उपधि रखते हैं । अगर रखकर अर्थात् वस्त्र - पात्र आदि संयम के साधन रखकर साधु अभिमान करे तो वह उसी प्रकार अनुचित है, जैसे फोडा न होने पर भी पट्टी बाँधना अनुचित है । परन्तु जैसे फोडा होने पर पट्टी बाघना अनुचित नही है, उसी प्रकार निरभिमान होकर और अपनी अशक्ति को

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