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२२८-सम्यक्त्वपराक्रम (३)
चमरेन्द्र से इस प्रकार आश्वासन पाकर कोणिक बहुत प्रसन्न हुआ । अब कोणिक फिर तैयार होकर राजा चेटक के सामन युद्ध करने आ पहुचा । भगवान् न कहा-- उस सग्राम मे एक करोड अस्सो लाख मनुष्य मारे गये ।
भगवतीसूत्र मे भी एक ऐसा उदाहरण आया है । वरुण नागनतुआ नामक एक श्रावक था। यह श्रावक वेल बेले पारणा करता था । वह चेटक राजा का सामन्त था । एक वार उसे युद्ध मे आने के लिए कहा गया। उस समय उसके दूसरा उपवास था । क्या ऐसा उपवास करने वाले को युद्ध मे जाना उचित था? क्या वह नहीं कह सकता था कि मैं उपवासी हू । युद्ध मे कैसे जा सकता हू? परन्तु उसने ऐसा कोई उत्तर न देते हुए यही कहा कि अवसर आने पर सेवक को स्वामी की सेवा करनी हा चाहिए । स्वामी की सेवा करने के ऐन मौके पर कोई बहाना बनाकर किनारा काटना अनुचित है । अवसर प्राने पर नमकहराम बनना क्या हरामखोरी नही है ?
आज भारतवर्ष मे बडी हरामखोरी दिखाई देती है। जो लोग भारत का अन्न खाते है वहो भारत की नाक कटाने वाले कामो मे शामिल होते है । जो वस्त्र भारत को गुलाम बनाते है, उन्ही को वे अपनाते है । भारत को सभ्यता का, रहन-सहन आदि को भुता दते है। यह नमकहरामी नही तो क्या है ? वायसराय गवनर आदि आते है और भारत का शासन करते है, पर उन्हे भारतीय वेपभूषा पहनने के लिए कहा जाये तो क्या वे कहना मानेगें ? वे यही उतर देगे कि हम तो अपनी मातृभूमि की सेवा बजाने आये हैं,