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चौतीसवाँ बोल-२२६
द्रोह करने नही । अतएव हम अपना वेष कैसे छोड सकते है ? इस प्रकार अग्रेज लोग भारत मे रहते हुए भी अग्रेजी पोशाक पहनकर फूले नही समाते। यह कृतघ्नता के सिवाय
और क्या है ? पोशाक और रहन-सहन से मातृभूमि की पहचान होती है । मगर आज भारत का रहन-सहन बदल गया है। सभ्यता बदल देने से मातृभूमि के प्रति द्रोह होता है । देशहित की दष्टि से भी भारतीय सस्कृति अपनाने योग्य है।
वरुण नागनतुआ वीर होने के कारण ही, उपवासो होता हुआ भी, देशरक्षा के लिए युद्ध में शामिल हो गया।
मगर आज कायरता आ जाने के कारण देश, समाज और धर्म का पतन हो रहा है।
कहने का आशय यह है कि चेटक राजा और वरुण नागनतुओं ने श्रावक या सम्यग्दृष्टि होने पर भी सग्राम लडा । फिर भी उनका स्थूल अहिंसावत खडित न हुआ। इसका कारण यही है कि वे निरपराध को ही मारने के त्यागी थे । ऐसी अवस्था मे उनका स्थूल अहिसावत कैसे भग हो सकता था अपराधी को मारने का समावेश स्थूल हिंसा मे नही होता । राज्य भी ऐसे कामो को अपराध नहीं गिनता । लोग अपराधी को दण्ड देने के समय दूर-दूर भागते हैं और निरपराध के गले पर कलम कुठार चलाने के लिए तैयार हो जते है । यह उनको कायरता है ।
उक्त कथन का आश्रय यह है कि गृहस्थधर्म मर्यादायुक्त है । गृहस्थधर्म का पालन करने से आत्मा का विकास भी होता है और सासारिक काम भी नही रुकता । जैन