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चौतीसवां बोल-२२३
अव दूसरा कोई उपाय काम में लाना चाहिए। यह सोच. कर उसने कोणिक मे कहा- तुम्हे अपने भाई पर इतना अधिक विश्वास है, यह मुझे नहीं मालूम था । तुम्हे इतना विश्वास है, यह अच्छा ही है। मगर एक बार अपने विश्वासपात्र भाई की परीक्षा तो कर देखो कि उन्हें तुम्हारे ऊपर कितना विश्वास है और तुम्हारे विश्वास पर वह हार तथा हाथी भेजता है या नहीं?
कोणिक को, यह बात पसन्द आ गई । उसने बहिलकुमार के पास सदेशा भिजवा दिया- इतने दिनो तक हार
और हाथी का उपभोग तुमने किया है। अब कुछ दिनो तक हमे उपभोग करने दो।
यह सदेश पाकर बहिलकुमार ने सोचा अब कोणिक की नजर हार और हाथी पर पडी है । वह प्रत्येक उपाय से हार-हाथी को हस्तगत करने की चेष्टा करेगा । मुझे राज्य में कोई हिस्सा नही मिला । फिर भी मैंने हारहाथी पाकर ही सतोष मान लिया । अब यह भी जाने की तैयारी मे है !
इस प्रकार विचार कर और हार तथा हाथी को बचाने के लिए बहिलकुमार रात्रि के समय निकल पड़ा और अपने नाना राजा चेटक की शरण में जा पहुंचा । बहिलकुमार ने राजा चेटक को सारी घटना कह सुनाई । चेटक ने सम्पूण घटना सुनकर बहिलकुमार से कहा- 'तुम्हारी बात ठीक है।' राजा चेटक ने उसे अपने यहा आश्रय दिया ।
बहिलकुमार हार और हाथी लेकर बाहर चला गया है, यह समाचार सुनते ही पदमा र'नी को कोणिक के कान