Book Title: Samyaktva Parakram 03
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 233
________________ चौतीसवां बोल - २२५ चेटक का उत्तर सुनकर कोणिक ने फिर कहला भेजा - हम राजा हैं । रत्नो पर राजा का ही अधिकार होता है । तुम्हें हमारे बीच मे पडने की कोई आवश्यकता नही है । वहिलकुमार को मेरे पास भेज दो। हम भाई-भाई आपस मे निपट लेगे । दूत ने चेटक के पास पहुंचकर कोणिक का सन्देश सुनाया । कोणिक ने अपने सन्देश में राज्य का हिस्सा देने के विषय मे कुछ भी नही कहलाया था । अतएव चेटक ने यही प्रत्युत्तर दिया- अगर कोणिक, बहिलकुमार को राज्य मे हिस्सा देने को तैयार हो, तब तो ठीक है । मगर उसने इस सम्बन्ध मे कुछ भी नही कहलाया । ऐसी स्थिति में बहिलकुमार को कैसे भेज सकता हू ? सबलो से निर्बलो की रक्षा करना तो हमारी प्रतिज्ञा है । दूत फिर चम्पानगरी लौट गया और चेटक का उत्तर कोणिक से कह दिया । कोणिक को अपनी शक्ति का अभिमान था । उसने राजा चेटक को कहला दिया- या तो वहिलकुमार को हार - हाथी के साथ मेरे पास भेज दो, अन्यथा युद्ध के लिए तैयार हो जाओ । चेटक राजा ने अपने गणसंघ के सब सदस्यों को एकत्र किया और सम्पूर्ण घटना से परिचित किया । ऐसी परि स्थिति में क्या करना चाहिए, इस विषय मे उनकी सम्मति पूछी। आगे-पीछे का विचार करने के बाद सभी राजा इस निर्णय पर पहुंचे कि -क्षत्रिय होने के नाते सबलो द्वारा 'सताये जाने वाले निर्बलो की रक्षा करना हमारा धर्म है ।

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